शनिवार, 12 अप्रैल 2025

नजरिया जीने का : अल्बर्ट आइंस्टाइन के इन पांच टिप्स से करें बच्चो की पेरेंटिंग

अल्बर्ट आइंस्टीन दुनिया के महान वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने फिजिक्स में कई महत्वपूर्ण योगदान दिया है. अल्बर्ट आइंस्टाइन की विलक्षण सोच और उनकी प्रतिभा का दुनिया कायल है. आइए हम जानें कि पेरेंटिंग टिप्स अर्थात बच्चों के संबंध में संसार के इन महान वैज्ञानिकों का क्या कहना ह

आत्मविश्वास और स्वतंत्रता पर बल: 
बच्चों के संबंध में आइंस्टीन ने पेरेंट्स के लिए संदेश दिया है कि आप अपने बच्चों को सोचने और कुछ अलग करने के लिए उन्हें पर्याप्त आजादी दें. बेशक पेरेंटिंग मॉनिटरिंग करे, लेकिन उनके अपने बच्चों को आज़ादी देने किसी प्रकार की कंजूसी नहीं करनी चाहिए. उनका मानना था कि बच्चों को आजादी देने से हीं उनके अंदर आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की भावना विकसित होती है।

जिज्ञासा बढ़ाएं: 
अल्बर्ट आइंस्टीन का यह साफ मानना था के बच्चों में जिज्ञासा का बढ़ना बहुत जरूरी . इसके लिए इसके लिए यह जरूरी है की परेंट्स  बच्चोंक साथ समय  बिताए. अल्बर्ट आइंस्टीन अल्बर्ट आइंस्टीन का यह मानना था की बच्चों में सीखने की इच्छा और जानने की उत्कंठा बहुत जरूरी है.  इससे बच्चों में सीखने की इच्छा और नए ज्ञान की खोज करने की क्षमता विकसित होती है।

रचनात्मकता को प्रोत्साहित करें: 
बच्चों के अंदर रचनात्मक का होना बहुत जरूरी होता है क्योंकि क्रिएटिव माइंड के बच्चे हैं ज्यादा सफल होते हैं. अल्बर्ट आइस्टीन ने बच्चों में रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए जोर देते हुए कहा कि उनके अंदर उनके अंदर कल्पना शीलता का होना  बहुत जरूरी है. इससे बच्चों में कल्पनाशीलता और नवाचार की क्षमता विकसित होती है।

विफलता को स्वीकार करें:
 बच्चों के अंदर साहस और धर या की भवना विकसित करने के लिए यह जरूरी है कि आप उनकी प्रारंभिक विफलताओ को स्वीकार करना सीखें. प्रारंभिक विफलताओं को स्वीकार करे. लेकिन उनकी इच्छा शक्ति पर इसे हावी नहीं होने दें. जैसा कि आप जानते हैं साहस की तरह भाई भी संक्रामक होता है इसलिए यह जरूरी है कि आप बच्चों के अंदर से भाई को हटाकर उनके अंदर साहस और धैर्य की भावना को विकसित करने में अपना योगदान दें.

सुरक्षा की भावना पर बल:
 अल्बर्ट आइंस्टाइन ने बच्चों के साथ समय बिताने और उनके साथ मित्रवत रहने पर जोर दिया था उनका मानना था के पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ हमेशा प्रेम और समर्थन के साथ खड़ा रहना चाहिए. पेरेंट्स के प्रेम और समर्थन से बच्चों में आत्मविश्वास और सुरक्षा की भावना विकसित होती 

रविवार, 6 अप्रैल 2025

नजरिया जीने का: भगवान राम के जीवन से सीखें कैसे सच्चे रिश्ते सुविधा नहीं, समर्पण से बनते हैं


हर रिश्ते की आधारशिला भरोसा है। जब आपको अपने साथी के निर्देशों पर भरोसा होता है और लगता है कि उनके इरादे उचित हैं, तो इससे शक्ति का संतुलन बनता है जो भागीदारों के बीच भावनात्मक संबंधों को लाभ पहुंचाता है। समर्पण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि भागीदार स्वेच्छा से एक दूसरे के लिए बलिदान करते हैं, जिससे उनकी एकता मजबूत होती है।

सच्चाई तो यही है कि समर्पण से ही सच्चे रिश्ते बनते हैं. समर्पण की भावना से रिश्तों में दरार नहीं पड़ती. समर्पण से रिश्ते मज़बूत होते हैं और भावनात्मक संबंध गहरा होते हैं. 

मर्यादा पुरुषोतम भगवान राम का जीवन हमें काफी कुछ सिखाता है क्योंकि उनके जीवन की प्रत्येक घटना जीवन मे  संबंधों और आत्मीयता के भरोसा की बुनियाद जैसी है। कहते हैं नया की विश्ववास प्रेम की पहली सीढ़ी होती है और भगवान राम ने विश्वास के बदौलत हीं सबका दिल जीता है। 

वो एक पुत्र का धर्म निभाते हुए अपने जिन्होंने पिता की बात मानी और एक आदर्श पुत्र के रूप मे जाने गए। इसके साथ हीं भगवान राम एक आदर्श पति की भूमिका मे पत्नी की मर्यादा रखी।एक तरफ वो एक मित्र के रूप मे अपने सहयोगियों को को पर्याप्त  सम्मान दिया और सेवक को भी दोस्ती का दर्जा देने मे जरा भी संकोच नहीं किया। 

रामायण के प्रसंग का यदि आप अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि राम के जीवन की सबसे पहली परीक्षा तब आई जब उन्हें अयोध्या का राजा घोषित किया जाना था। लेकिन सौतेली माँ कैकेयी ने उन्हें वनवास भेजने की माँग कर दी।

 एक तरफ था राजपाठ, आराम, सम्मान। दूसरी ओर था जंगल, कष्ट और अनिश्चितता, लेकिन उन्होंने अविलंब वनवास स्वीकार किया और राज पाट को त्यागकर बिना कोई शिकायत किए, मुस्कुराकर वनवास स्वीकार को निकाल पड़ते हैं तो लक्ष्मण और सीता भी उनके साथ चलने को तैयार हो जाते हैं।  एक राजा की पत्नी होकर भी सीता जंगल की कुटिया में रहकर हर कष्ट में राम के साथ रहीं। कहा जाता है कि लक्ष्मण ने 14 वर्षों तक नींद नहीं ली और हर पल भगवान राम और सीता की सेवा मे लगे रहे। 

क्या यह रिश्ते मे एक समर्पण का भाव नहीं है?

 हमारा रिश्ता मूल रूप से आपसी सम्मान पर आधारित है। हमारे संबंध में विश्वास भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वस्थ रिश्तों में, आपसी सम्मान और विश्वास तब प्रदर्शित होता है जब निर्णय लेने में हम एक-दूसरे के निर्णय को मानते हैं और अपनी निर्णय को थोपते हैं बल्कि एक सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न किया जाता है।