रविवार, 10 अगस्त 2025

नजरिया जीने का: भगवत गीता से सीखें सफलता के लिए जीवन मे धैर्य का महत्व

Najariya jine ka patience with the Bhagwad  Geeta

भगवद गीता में धैर्य (Patience) को महत्वपूर्ण गुणों में से एक बताया गया है, जो किसी व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों में सही मार्ग पर बनाए रखने में सहायक होता है। परिवार के साथ धैर्य रखना हीं प्रेम है तथा  दूसरों के साथ धैर्य रखना सम्मान है। खुद के प्रति धैर्य रखना आत्मविश्वास है और ईश्वर के प्रति धैर्य ही विश्वास है।  गीता में धैर्य को आत्मसंयम, स्थिरता, और मन की शांति के साथ जोड़ा गया है।

गीता के अनुसार, धैर्य केवल प्रतीक्षा नहीं है, बल्कि आत्मसंयम, सकारात्मक दृष्टिकोण और सही मार्ग पर अडिग रहने की क्षमता है। इसे आत्मा की स्थिरता और आंतरिक शक्ति का प्रतीक माना गया है।

गीता के अनुसार धैर्य का अर्थ है कि विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहना अर्थात  कठिन समय में हार न मानना और अपने कार्य के प्रति निष्ठावान रहना। यह धैर्य ही हैं जो हमें कठिन परिस्थितियों मे भी सावधानी के साथ इंतजार करने और उससे निकलने मे अपने प्रयासों के प्रति ईमानदार बनाती है। 

संघर्ष हमें सीमाओं से आगे खुद पर विश्वास करना सिखाता है

गीता के अनुसार मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना भी धैर्य ही है जो हमें खुद पर  नियंत्रण करना सिखाती है साथ ही हमें लोभ, लालच और गलत करने के प्रति सावधान करते हुए अ पने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करती है। वास्तव में यह धैर्य ही है जो हमें  इंद्रियों पर नियंत्रण रखना सिखाती है। 

मनमुटाव को दूर कर फिर से संवाद शुरू करें

भविष्य में अच्छे परिणाम की आशा रखना और अपने प्रयास को जारी रखना भी धैर्य है जो गीता के प्रमुख उपदेशों मे शामिल है। सच तो यह है कि अपने वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बनाए रखना भी धैर्य है जो गीता के अनुसार हमें सीख मिलती है।  

भगवद गीता के प्रमुख श्लोक जो धैर्य पर प्रकाश डालते हैं:

श्लोक: 2.14

"मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।

आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।"

अर्थ: सुख-दुःख, ठंड-गर्मी आदि अनुभव जीवन में आते-जाते रहते हैं। ये अनित्य (अस्थाई) हैं। हे अर्जुन! इन्हें सहन करना सीखो।

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तात्पर्य यह है  कि धैर्य का अर्थ केवल कठिनाइयों को सहने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समझने में है कि ये परिस्थितियां अस्थायी हैं।

श्लोक: 6.5

"उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।

आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।"

अर्थ: मनुष्य को अपने आत्मा द्वारा स्वयं की सहायता करनी चाहिए और अपने को नीचे गिरने से बचाना चाहिए। आत्मा ही मनुष्य का मित्र है और आत्मा ही उसका शत्रु है।

धैर्य का अभ्यास तभी संभव है जब हम आत्मा के मित्र बनें और अपने भीतर की शक्ति का उपयोग करें।

सच्चाई तो यह है कि यह धैर्य ही है जो हमें जीवन मे सही निर्णय लेने में मदद करता है साथ हीं  धैर्य हमें कठिन समय सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है।

धैर्य का महत्व जीवन मे और भी बढ़ जाता है जब हम विपरीत परिस्थितियों से दो-चार हो रहे होते हैं  और उस समय के संघर्षों का सामना धैर्य के बिना संभव नहीं।

कठिन समय से विचलित होना कायरों का काम है

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