अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए आंदोलन का अपहरण कर अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी नामक एक ऐसी पार्टी बनाई जिसने भ्रष्टाचार को खत्म करने और कुशल शासन लाने का वादा किया।
काफी सफाई से केजरीवाल ने सत्ता पर कब्जा कर नया करने के नाम पर लोगों के आँखों मे धूल झोंक कर और मुफ़्त के रेबड़ी थमा कर लगभग एक दशक तक शासन किया लेकिन उन मुद्दों को काफी सफाई से टच तक नहीं किया जैसे भ्रस्टाचार पर वार, लोकपाल, यमुना की सफाई, दिल्ली को पेरिस बनाने का वादा।
इसके बदले दिल्ली को क्या मिला? घोटाले, कुप्रबंधन और एक भूतिया सरकार का नाटक जिसमें नाकामियों के बदले सिर्फ मोदी सरकार को गाली देना। ऐसे सरकार जहां मुख्यमंत्री के पास कोई मंत्रालय नहीं था और कोई वास्तविक जिम्मेदारी नहीं थी और काम के नाम पर सिर्फ दिखावा और प्रचार का पाखंड।
कर्तव्य का यह परित्याग और लोगों के साथ विश्वासघात AAP के शासन की परिभाषित विशेषता बन गई और यही केजरीवाल एण्ड कंपनी के लिए काल साबित हट । दिल्ली को बिगड़ने के लिए छोड़ दिया गया जबकि केजरीवाल ने आत्म-प्रचार, दोषारोपण और राजनीतिक विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया। और ऐसे हालत मे परिणाम तो यही होना था क्योंकि केजरीवाल काम करना ही नहीं चाहते थे और घमंड ऐसे कि काँग्रेस और सहयोगियों को अपनी हठधर्मिता से झुकना इनका विशेषता बन चुकी थी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें