रविवार, 9 फ़रवरी 2025

नजरिया जीने का: राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए आंदोलन का अपहरण और जनता की आँखों मे धूल झोंकना पड़ा महंगा


नजरिया जीने का: अगर आप 2025 के चुनाव परिणामों का आकलन करेंगे तो यह स्पष्ट है कि ये रिजल्ट न केवल आप की हार हैं, बल्कि उसके झूठ, अहंकार और अराजकता की राजनीति के खिलाफ जनता का गुस्सा भी हैं  जिसने पिछले चुनावों मे आप को सर माथे पर बैठाया और भाजपा और काँग्रेस को ठेंगा दिखाया था। लेकिन इस बार लोगों ने काँग्रेस को शून्य पर रखते हुए भी भाजपा और मोदी की गारंटी पर मुहर लगा दिया। 

अरविन्द केजरीवाल का भारतीय राजनीति मे उदय वास्तव मे रामदेव, अन्ना हजारे और अन्य नागरिक समाज समूहों द्वारा शुरू किए गए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की परिणति थी। आंदोलन का काफी सफाइ के साथ अरविन्द केजरीवाल एण्ड कंपनी ने हाइजेक कर राजनीति मे अपना मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। उपस्थिति भी ऐसी की न केवल भारत बल्कि दुनिया मे राजनीति मे कुछ नया करने का दंभ भरने वाले अरविन्द केजरीवाल एण्ड कंपनी ने लोकप्रियता का लाभ उठाकर AAP राजनीति मे आई।  पार्टी मे कांग्रेस शासन के गहरे भ्रष्टाचार को उजागर किया था और आंदोलन के जोश को हाइजेक कर केजरीवाल सत्ता हथिया लिया था। 

अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए आंदोलन का अपहरण कर अरविन्द केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी नामक एक  ऐसी पार्टी बनाई जिसने भ्रष्टाचार को खत्म करने और कुशल शासन लाने का वादा किया। 

काफी सफाई से केजरीवाल ने सत्ता पर कब्जा कर नया करने के नाम पर लोगों के आँखों मे धूल झोंक कर और मुफ़्त के रेबड़ी  थमा कर लगभग एक दशक तक शासन किया लेकिन उन मुद्दों को काफी सफाई से टच तक नहीं किया जैसे भ्रस्टाचार पर वार, लोकपाल, यमुना की सफाई, दिल्ली को पेरिस बनाने का वादा। 

इसके बदले दिल्ली को क्या मिला? घोटाले, कुप्रबंधन और एक भूतिया सरकार का नाटक जिसमें नाकामियों के बदले सिर्फ मोदी सरकार को गाली देना। ऐसे सरकार  जहां मुख्यमंत्री के पास कोई मंत्रालय नहीं था और कोई वास्तविक जिम्मेदारी नहीं थी और काम के नाम पर सिर्फ दिखावा और प्रचार का पाखंड। 

 कर्तव्य का यह परित्याग और लोगों के साथ विश्वासघात AAP के शासन की परिभाषित विशेषता बन गई और यही केजरीवाल एण्ड कंपनी के लिए काल साबित हट । दिल्ली को बिगड़ने के लिए छोड़ दिया गया जबकि केजरीवाल ने आत्म-प्रचार, दोषारोपण और राजनीतिक विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया। और ऐसे हालत मे परिणाम तो यही होना था क्योंकि केजरीवाल काम करना ही नहीं चाहते थे और घमंड ऐसे कि काँग्रेस और सहयोगियों को अपनी हठधर्मिता से झुकना इनका विशेषता बन चुकी थी। 

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