स्वामी विवेकानंद भारत के महान संत, समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति सभ्यता के अतिरिक्त धर्म और आध्यात्मिकता के को अपने विचारों से एक नई ऊंचाई दी। शिकागो मे धर्म सम्मेलन मे स्वामी विवेकानंद ने धर्म और धर्म और आध्यात्मिकता के साथ वेदांत और योग के ज्ञान को पश्चिमी दुनिया तक पहुँचाया। आज भी स्वामी जी के विचार और उनकी पुस्तकें, उनका जीवन,आत्मबल और मानवता के उत्थान के साथ साथ खासतौर पर युवाओं के लिए एक अद्भुत प्रेरक और प्रेरणादायक है ।
आत्मविश्वास, परिश्रम और सेवा के साथ हीं उन्होंने जीवन से जुड़े हर प्रसंगों पर अपने विचार दिए हैं जो खासतौर पर युवाओं के लिए काफी प्रेरणादायक है।
स्वामी विवेकानंद के प्रमुख विचार
स्वामी विवेकनाद के विचार और उनके शिक्षाएं खासतौर पर युवाओं के लिए काफी क्रांतिकारी और जोश से भरपूर हैं।
आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की अहमियत को समझाने के लिए विवेकानंद ने हमेशा इंसानों को प्रेरित किया है। वो हमेशा कहा करते थे "खुद पर विश्वास करो, क्योंकि जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते।"
शिक्षा का महत्व को उन्होंने हमेशा से प्रथम प्राथमिकता दिया और उनका कहना था की शिक्षा के बिना इंसानों और खासकर युवाओं का विकास नहीं हो सकता। विवेकानंद ने कहा था कि -"शिक्षा वही है जो जीवन की समस्याओं से निपटने में मदद करे, न कि केवल डिग्रियाँ अर्जित करने के लिए।"
धर्म और आध्यात्मिकता के प्रति स्वामी विवेकानंद ही सदा हीं प्रैक्टिकल विचार रखा और शिकागो के धर्म सम्मेलन मे उन्होंने विश्व के मंच पर इसपर रखने उनके विचारों ने दुनिया मे क्रांति पैदा कर दिया। धर्म और आध्यात्मिकता के संबंध मे उनका कहना था कि – "सच्चा धर्म वह है जो हमें जोड़ता है, न कि जो हमें अलग करता है।"
युवाओं की शक्ति पर उन्हे काफी भरोसा था और वो कहा करते थे कि "तुम्हें अंदर से बाहर की ओर विकसित होना होगा। कोई तुम्हें नहीं सिखा सकता, कोई तुम्हें आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुम्हारी आत्मा के अलावा कोई और गुरु नहीं है।"
युवाओं के लक्ष्य और उनके प्राप्ति के लिए उनका मंत्र था – "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"
युवाओं के लिए सफलता का मंत्र देते हुए उन्होंने कहा था कि – "एक विचार लो, उसे अपना जीवन बना लो—उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उसे जियो।" कर्म और उनसे प्रति अपने निष्ठा के रूप मे विवेकानंद का कहना था कि-"एक समय में एक काम करो और उसे ऐसे करो जैसे वही तुम्हारे जीवन का अंतिम कार्य हो।"
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