स्पर्श की कोमलता को, हम जानते हैं बाद में,
हृदय के गहरे संबंधों को पहले जानना भी जरूरी है।
हाँ, नि: शब्द तो होता है प्रेम, लेकिन
समर्पण की मौन भाषा को जानना भी जरूरी है।
यह विश्वास हीं तो है, जो लाती है करीब हमें,
फिर भी, सहमति की हद भी जानना जरूरी है।
हाँ, सच्चा प्रेम बिल्कुल निःस्वार्थ हीं होता है।
पर अपेक्षा की सीमा का जानना भी जरूरी है।
भावनाओं की गहराई में उतरना तो प्रेम है, पर,
मौन वार्तालाप की संवेदना को जानना भी जरूरी है।
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