जिब्रान की एक बड़ी प्रीतिकर कहानी है कि संसार के जन्म के समय परमात्मा ने जब सब बनाया, तब उसने एक सौंदर्य की देवी और एक कुरूपता की देवी भी बनायी। उन दोनों को उसने पृथ्वी पर भेजा। मार्ग लंबा है आकाश से पृथ्वी तक आने का। धूल से भर गए उनके वस्त्र, उनके शरीर-लंबी यात्रा थी। तो वे दोनों एक झील के किनारे उतरीं, और स्नान करने को झील में उतरीं। दोनों ने अपने कपड़े बाहर रख दिए, झील के किनारे। कोई था भी नहीं आसपास। दोनों नग्न हो कर झील में स्नान किए। सौंदर्य की देवी तैरती हुई दूर तक निकल गयी। तभी कुरूपता की देवी बाहर निकली। उसने सौंदर्य की देवी के कपड़े पहन लिए और भाग खड़ी हुई। जब सौंदर्य की देवी ने पीछे लौट कर देखा तो वह बड़ी हैरान हुई। देखा कि कपड़े तो जा चुके।
सुबह हुई जा रही थी, गांव के लोग जगने लगे। और आसपास लोगों के आने-जाने की चहलकदमी शुरू हो गयी। मजबूरी में सौंदर्य की देवी को कुरूपता के वस्त्र पहन लेने पड़े।
और जिब्रान ने कहा है, "तब से सौंदर्य की देवी कुरूपता की देवी के वस्त्र पहने घूम रही है। और कुरूपता की देवी सौंदर्य के वस्त्र पहने घूम रही है। ऐसा ही कुछ हुआ है।"
दुख सुख के वस्त्र पहने हुए घूम रहा है।
असत्य सत्य के वस्त्र पहने हुए घूम रहा है। और मन वहीं धोखा खा जाता है।
श्रोत:ओशो;
एक ओंकार सतनाम ~ प्रवचन-20
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