बुधवार, 16 जुलाई 2025
नजरिया जीने का; सौंदर्य और कुरुपता के धोखे से निकलना सीखे
मंगलवार, 15 जुलाई 2025
नजरिया जीने का: खुद को कोसना छोड़े और जानें क्या होता हैं भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य
सोमवार, 14 जुलाई 2025
नजरिया जीने का: आपके शांत मस्तिष्क का रिफ्लेक्शन है आपका धैर्य, पहचानें इसकी कीमत
नजरिया जीने का @पेरेंटिंग टिप्स - माता-पिता-बच्चे के रिश्ते को ऐसे करें मजबूत
बच्चों के साथ समय बिताएं
तमाम व्यस्तताओं के वावजूद आप अपने बच्चों के साथ दिन का कुछ समय सिर्फ और सिर्फ उनके लिए रखें। बच्चों के साथ जब आप हों तब सिर्फ उनकी सुने और अपनी परेशानियों को खुद से दूर रखे क्योंकि आपकी परेशानी आप से अधिक आपके बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती है। याद रखें, हमारी परेशानियों कि चर्चा के लिए हमारे पार्टनर हैं, बच्चे नहीं।
बच्चों से खुलकर बात करें
बच्चों के साथ अगर आप हैं तो सब से पहले उन्हे यह विश्वास दिलाएं कि आप सिर्फ उनके लिए उनके साथ हैं और उनकी बातों को ध्यान से सुनें। उनकी बातों को सुनने के साथ ही उनके परेशानियों को समझे कुछ ऐसे कि वो आपसे कुछ भी छिपायें नहीं। इसके साथ ही आप उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। जब बच्चा किसी समस्या से गुज़र रहा हो, तो उसे भावनात्मक सहारा दें साथ ही उन्हें बताएं कि आप हर परिस्थिति में उनके साथ हैं।
प्रशंसा और प्रोत्साहन दें
प्रशंसा और प्रोत्साहन कि भूख भला किसे नहीं होती है। वो कहते हैं ना कि "प्रेम से जानवरों को भी वश मे किया जा सकता है।" बच्चों को प्रेम प्रदर्शित करें और उनकी प्रसंशा करें। बच्चों को उनकी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर भी उनकी सराहना करें और उन्हे प्रोत्साहित करें ताकि उन्हे लगे कि उसने कुछ अच्छा किया है।
घर में अनुशासन के लिए नियम बनाएं
अनुशासन कि महत्व को उन्हे समझने और घर मे भी उचित माहौल रखें। खुद भी अनुसाशन का पालन करें और उन्हे यह अहसास दिलाएं कि अनुसाशन का महत्व जीवन मे कितना महत्वपूर्ण है। बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की आदतें और व्यवहार अपनाते हैं इसलिए, वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप उनसे अपेक्षा करते हैं।
नजरिया जीने का: भगवान राम के जीवन से सीखें कैसे सच्चे रिश्ते सुविधा नहीं, समर्पण से बनते हैं
हर रिश्ते की आधारशिला भरोसा है। जब आपको अपने साथी के निर्देशों पर भरोसा होता है और लगता है कि उनके इरादे उचित हैं, तो इससे शक्ति का संतुलन बनता है जो भागीदारों के बीच भावनात्मक संबंधों को लाभ पहुंचाता है। समर्पण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि भागीदार स्वेच्छा से एक दूसरे के लिए बलिदान करते हैं, जिससे उनकी एकता मजबूत होती है।
सच्चाई तो यही है कि समर्पण से ही सच्चे रिश्ते बनते हैं. समर्पण की भावना से रिश्तों में दरार नहीं पड़ती. समर्पण से रिश्ते मज़बूत होते हैं और भावनात्मक संबंध गहरा होते हैं.
मर्यादा पुरुषोतम भगवान राम का जीवन हमें काफी कुछ सिखाता है क्योंकि उनके जीवन की प्रत्येक घटना जीवन मे संबंधों और आत्मीयता के भरोसा की बुनियाद जैसी है। कहते हैं नया की विश्ववास प्रेम की पहली सीढ़ी होती है और भगवान राम ने विश्वास के बदौलत हीं सबका दिल जीता है।
वो एक पुत्र का धर्म निभाते हुए अपने जिन्होंने पिता की बात मानी और एक आदर्श पुत्र के रूप मे जाने गए। इसके साथ हीं भगवान राम एक आदर्श पति की भूमिका मे पत्नी की मर्यादा रखी।एक तरफ वो एक मित्र के रूप मे अपने सहयोगियों को को पर्याप्त सम्मान दिया और सेवक को भी दोस्ती का दर्जा देने मे जरा भी संकोच नहीं किया।
रामायण के प्रसंग का यदि आप अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि राम के जीवन की सबसे पहली परीक्षा तब आई जब उन्हें अयोध्या का राजा घोषित किया जाना था। लेकिन सौतेली माँ कैकेयी ने उन्हें वनवास भेजने की माँग कर दी।
एक तरफ था राजपाठ, आराम, सम्मान। दूसरी ओर था जंगल, कष्ट और अनिश्चितता, लेकिन उन्होंने अविलंब वनवास स्वीकार किया और राज पाट को त्यागकर बिना कोई शिकायत किए, मुस्कुराकर वनवास स्वीकार को निकाल पड़ते हैं तो लक्ष्मण और सीता भी उनके साथ चलने को तैयार हो जाते हैं। एक राजा की पत्नी होकर भी सीता जंगल की कुटिया में रहकर हर कष्ट में राम के साथ रहीं। कहा जाता है कि लक्ष्मण ने 14 वर्षों तक नींद नहीं ली और हर पल भगवान राम और सीता की सेवा मे लगे रहे।
क्या यह रिश्ते मे एक समर्पण का भाव नहीं है?
हमारा रिश्ता मूल रूप से आपसी सम्मान पर आधारित है। हमारे संबंध में विश्वास भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वस्थ रिश्तों में, आपसी सम्मान और विश्वास तब प्रदर्शित होता है जब निर्णय लेने में हम एक-दूसरे के निर्णय को मानते हैं और अपनी निर्णय को थोपते हैं बल्कि एक सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न किया जाता है।
नजरिया जीने का: अपने विचारों को दीजिए खुला आकाश-बड़ा सोचें और अपने जीवन में बड़ा हासिल करें
यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।
असीमित सोच:
हमारा दिमाग शारीरिक बाधाओं से बंधा नहीं है और हम चाहें तो हम वर्तमान और सीमाओं से परे कल्पना कर सकते हैं, अन्वेषण कर सकते हैं और सपने देख सकते हैं। यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।
नजरिया जीने का: आपकी प्रसन्नता में छिपा है आपकी सफलता का रहस्य
यह केवल हम ही हैं जो इस तथ्य के बावजूद कि आपके पास इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त शक्ति और ऊर्जा है, अपनी सोच को सीमा प्रदान करते हैं। यह असीमित सोच हमें उन संभावनाओं पर विचार करने की अनुमति देती है जो पहली नज़र में संभव नहीं लगती हैं।
बड़ी सोच का महत्व:
प्रकृति ने हमें अपने जीवन में चमत्कार करने की अपार शक्ति और क्षमता प्रदान की है, लेकिन त्रासदी यह है कि हम दर्शक दीर्घा के बीच में फिट होने का आनंद लेते हैं। महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने से प्रेरणा मिलती है और हमें उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
बड़ी सोच चुनौतियों का सामना करने में नवीनता, रचनात्मकता और लचीलेपन को बढ़ावा देती है। हमें ऊंचा सोचना चाहिए और अपनी सोच को नई ऊंचाइयां प्रदान करनी चाहिए, आश्चर्यजनक रूप से हम अखबारों और टीवी समाचारों में ऐसे चमत्कार रचने वालों से गुजरते रहते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों ने अपनी सोच को नई ऊंचाई प्रदान की है और अपने जीवन में बड़ा मुकाम हासिल किया है.
संतुलन महत्वपूर्ण है-
जबकि बड़ा सोचना महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ हीं सुनिश्चित करना भी जरुरी है कि आपके लक्ष्य भी यथार्थवादी हों और आपके मूल्यों और संसाधनों के अनुरूप हों। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, सीखने, बढ़ने और उनके साथ तालमेल बिठाने की प्रक्रिया अत्यधिक मूल्यवान है।
दुनिया में हर सफल शख्सियत ने तभी बड़ा हासिल किया है, जब उसने बड़ा सोचने का साहस किया। हमें एक मुर्ख और लापरवाह इंसान बनने की मानसिकता को बदलने के लिए तैयार रहना होगा न कि यह सोचना होगा कि प्रकृति ने हमें चमत्कार करने की सारी शक्ति और विचारों से सुसज्जित किया है।
गुरु वह शक्ति है जो अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ईश्वर की ओर ले जाती है-संजीव कृष्ण ठाकुर
गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर दिल्ली में एक भव्य आध्यात्मिक सत्संग और गुरु महिमा समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वृंदावन से पधारे विश्वविख्यात संत संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को गुरु महिमा का महत्व समझाते हुए भागवत गीता के कई प्रसंगों के माध्यम से जीवन मूल्यों और गुरु-शिष्य परंपरा की दिव्यता का सन्देश दिया।
इस मौके पर मौजूद अतिथियो में समाजसेवी व उद्धोगपति रमेश कपूर, वरिष्ठ कांग्रेस नेता शम्भू शर्मा, ज्ञानेश्वर सिंह SHO, बीजेपी बाहरी दिल्ली जिलाध्यक्ष रामचंद्र चावरिया, विधायक राजकुमार चौहान, निगम पार्षद धर्मबीर शर्मा, बिश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष दिनेश शर्मा, ट्रांसजेंडर समुदाय से कमलेश, ललिता नायक, दीपचंद्र, अदीप सेतिया, अशोक शर्मा, अमित पूरी, पण्डित भोला नाथ शुक्ला, , अर्चना शुक्ला, अंशु अग्रवाल, अमर अग्रवाल, नीरज जैन, पण्डित कृष्ण शास्त्री, आचार्य प्रेम शर्मा, समाजसेवी अंजू शर्मा व राजकमल शर्मा, प्रोड्यूसर राजेश्वरी सिंह, मनोज अग्रवाल, अंकित शर्मा, विकास शर्मा, सुमित मलिक, फूलचंद अलोरिया, लक्ष्य पण्डित, अमन परवाना, मनप्रीत कौर आदि प्रमुख थे।
विश्व शांति व मानवता के दूत के रूप में सम्मान
इस अवसर पर वर्ल्ड ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन (WHRO) की ओर से संत संजीव कृष्ण ठाकुर जी को "ग्लोबल पीस एंड ह्यूमिनिटी अवॉर्ड 2025" से सम्मानित किया गया। ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन योगराज शर्मा ने ठाकुर जी को यह सम्मान एक स्मृति चिन्ह और शाल ओढ़ाकर प्रदान किया।
योगराज शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा, "संजीव कृष्ण ठाकुर जी न केवल अध्यात्म के क्षेत्र में अपितु मानवता, प्रेम और करुणा के प्रचारक के रूप में भी वैश्विक स्तर पर एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं। उनकी वाणी और जीवन-दर्शन में आज के समाज के लिए मार्गदर्शन है।"
आयोजक और अन्य सम्मान
कार्यक्रम के आयोजक अरुण शर्मा 'लक्की हिंदुस्तानी' ने मंच पर उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों, संतों और साधकों का स्वागत और सम्मान किया। इसी कार्यक्रम में WHRO दिल्ली राज्य के चेयरमैन के रूप में अरुण शर्मा को भी औपचारिक रूप से नियुक्त किया गया और सम्मान प्रदान किया गया।
संजीव कृष्ण ठाकुर जी का जीवन और अध्यात्म यात्रा
संजीव कृष्ण ठाकुर जी का जन्म वृंदावन की पावन भूमि में हुआ। बाल्यकाल से ही ठाकुर जी में अध्यात्म और भक्ति के प्रति विशेष रुचि थी। उन्होंने श्रीमद्भागवत, गीता और वेद-पुराणों का गहन अध्ययन किया। ठाकुर जी अपने प्रवचनों में प्रेम मार्ग और मानव सेवा को ही सर्वोच्च धर्म बताते हैं।
संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने अब तक देश-विदेश में हजारों कथा, सत्संग और भागवत सप्ताह आयोजित किए हैं। मानवता और विश्व शांति के लिए समर्पित ठाकुर जी का उद्देश्य है कि समाज में अहिंसा, प्रेम, सद्भावना और अध्यात्मिक चेतना का प्रसार हो।
संजीव कृष्ण ठाकुर जी के श्रीमुख से सुनाई गई कथा और भजनों ने रोहिणी के इस आयोजन को दिव्यता और ऊर्जा से भर दिया। श्रद्धालुओं ने गुरु महिमा के इस दिव्य संदेश का लाभ उठाया और भाव-विभोर होकर ठाकुर जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।
रविवार, 13 जुलाई 2025
‘‘पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया’’ केवल नारा बनकर ही रह गया- कांग्रेस
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने दिल्ली विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट फंड और सुविधा एवं सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों की फीस में इस वर्ष भी बढ़ोतरी कि आलोचना किया है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट फंड और सुविधा एवं सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों की फीस में इस वर्ष भी बढ़ोतरी करके अतिरिक्त बोझा डाल दिया है। पिछले तीन वर्षों में यह वृद्धि लगभग दुगनी की गई है जबकि शिक्षक समुदाय भी इस पर आपत्ति जता रहा है।
डेवलपमेंट फंड, सुविधा और सर्विस चार्ज कालेज में पढ़ने वाले छात्रों से लेना अनैतिक है, इसको वहन करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने पूछा कि यह फीस वृद्धि भाजपा के के.जी. से पी.जी. तक मुफ्त शिक्षा देने के वादे के खिलाफ है जबकि दिल्ली सरकार ने दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि पर भी अभी तक कुछ नही किया है।
यह चिंताजनक है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की फीस में 20 प्रतिशत की वृद्धि करके उन पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालकर उन्हें मानसिक रुप से प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 में युनिवर्सिटी डेवलमेंट फंड और सुविधा व सर्विस चार्ज के 1500-1500 रुपये करके छात्रों से अतिरिक्त 3000 रुपये वसूले जाएंगे, इस बढ़ोतरी से दलित, वंचित, महिलाओं, कमजोर वर्ग, किसान, मजदूर, अल्पसंख्यक, ईडब्लूएस. पिछड़े वर्ग के छात्रों पर अधिक प्रभाव पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि भाजपा गरीब से शिक्षा को दूर करने की कोशिश कर रही है। शिक्षा का निजीकरण करके प्राईवेट संस्थानों में फीस पहले ही इतनी अधिक कर दी गई है कि उसमें कोई गरीब आदमी अपना बच्चा नही पढ़ा सकता और अब भाजपा सरकार दिल्ली विश्वविद्यालय में हर वर्ष फीस में बढ़ोतरी कर रही है।
देवेन्द्र यादव ने कहा कि भाजपा का नारा कि ‘‘पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया’’ केवल नारा बनकर ही रह गया है। जब भाजपा अगर सरकारी शिक्षण संस्थानों में फीस में अप्रत्याशित वृद्धि करेगी तो आम भारतीय के बच्चें कैसे पढ़ पाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर गंभीरता से विचार किया जाए तो स्पष्ट दिखता है कि फीस वृद्धि से लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अभी तक लोगों में यह मानसिकता है कि बेटी की जगह बेटे को पढ़ाऐं।
फिर फीस वृद्धि के बाद कहीं न कहीं भाजपा ’बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का अपना नारा भी बेमानी साबित कर रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा की शिक्षा विरोधी नीति के कारण 12वीं के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाली आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों की बेटियों का सपना पूरा नही हो सकता।