बुधवार, 16 जुलाई 2025

नजरिया जीने का; सौंदर्य और कुरुपता के धोखे से निकलना सीखे

जिब्रान की एक बड़ी प्रीतिकर कहानी है कि संसार के जन्म के समय परमात्मा ने जब सब बनाया, तब उसने एक सौंदर्य की देवी और एक कुरूपता की देवी भी बनायी। उन दोनों को उसने पृथ्वी पर भेजा। मार्ग लंबा है आकाश से पृथ्वी तक आने का। धूल से भर गए उनके वस्त्र, उनके शरीर-लंबी यात्रा थी। तो वे दोनों एक झील के किनारे उतरीं, और स्नान करने को झील में उतरीं। दोनों ने अपने कपड़े बाहर रख दिए, झील के किनारे। कोई था भी नहीं आसपास। दोनों नग्न हो कर झील में स्नान किए। सौंदर्य की देवी तैरती हुई दूर तक निकल गयी। तभी कुरूपता की देवी बाहर निकली। उसने सौंदर्य की देवी के कपड़े पहन लिए और भाग खड़ी हुई। जब सौंदर्य की देवी ने पीछे लौट कर देखा तो वह बड़ी हैरान हुई। देखा कि कपड़े तो जा चुके।

सुबह हुई जा रही थी, गांव के लोग जगने लगे। और आसपास लोगों के आने-जाने की चहलकदमी शुरू हो गयी। मजबूरी में सौंदर्य की देवी को कुरूपता के वस्त्र पहन लेने पड़े।

और जिब्रान ने कहा है, "तब से सौंदर्य की देवी कुरूपता की देवी के वस्त्र पहने घूम रही है। और कुरूपता की देवी सौंदर्य के वस्त्र पहने घूम रही है। ऐसा ही कुछ हुआ है।"

दुख सुख के वस्त्र पहने हुए घूम रहा है।
असत्य सत्य के वस्त्र पहने हुए घूम रहा है। और मन वहीं धोखा खा जाता है।

श्रोत:ओशो;
एक ओंकार सतनाम ~ प्रवचन-20

मंगलवार, 15 जुलाई 2025

नजरिया जीने का: खुद को कोसना छोड़े और जानें क्या होता हैं भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य


जीवन में परेशानियों का आना और जाना लगा रहता हैं क्योंकि अगर आपके जीवन में अगर कोई लक्ष्य है तो उसे पाने की कोशिश करने की जरूरत है। जाहिर है अगर कोशिश है तो रास्ते में बाधाएं  होंगी और उन्हें पार पाने की जद्दोजहद का नाम हीं तो संघर्ष है। 
अब सवाल यह है कि क्या हमें इन परेशानियों और उनसे संघर्ष को अपनी नाकामी और बदकिस्मती मान लेनी चाहिए?
आप सबसे पहले समझे कि भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य होता क्या है और क्या आप वाकई में इतने खुश किस्मत वाले लोगों में शामिल नहीं हैं।
किसी ने क्या खूब कहा है कि-
"मन का शान्त रहना, भाग्य है
मन का वश में रहना, सौभाग्य है।
मन से किसी को याद करना, अहो भाग्य है।
मन से कोई आपको याद करे, परम सौभाग्य है।"

तो फिर आप यह क्यों नहीं सोचते कि एकमात्र चीज जो आपके भाग्य से सीधा संबंधित है वह है आपका मन और वही आपके भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य का निर्धारक है।
भाग्य एक व्यक्ति के जीवन में होने वाली घटनाओं का पाठ्यक्रम है, सौभाग्य अच्छा भाग्य है, दुर्भाग्य बुरा भाग्य है, और अहो भाग्य एक मजबूत भावना है कि कुछ बहुत अच्छा हुआ है।

"भाग्य" शब्द का अर्थ है वह जो पहले से लिखा हुआ है या निर्धारित है। वही "सौभाग्य" का शाब्दिक अर्थ होता है  अच्छा भाग्य या सौभाग्य। स्वाभाविक रूप से यह शब्द केवल किसी व्यक्ति के जीवन में अच्छी घटनाओं का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है।

अगर जीवन के संघर्ष में भी आप वाकई में शांत है और अपने प्रयासों के प्रति ईमानदार हैं तो आप सबसे ज्यादा भाग्यशाली व्यक्ति हैं.

हालांकि "अहो भाग्य" एक अलग शब्द है जिसका मतलब "भाग्य", "सौभाग्य" और दुर्भाग्य से बिल्कुल अलग है। अहो भाग्य एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "कितना महान भाग्य!" यह एक मजबूत भावना व्यक्त करता है कि कुछ बहुत अच्छा हुआ है। यह सौभाग्य से अधिक एक प्रशंसा और विस्मय का भाव है। यह किसी विशेष क्षण या घटना के प्रति गहरी कृतज्ञता को व्यक्त करता है। 


      

सोमवार, 14 जुलाई 2025

नजरिया जीने का: आपके शांत मस्तिष्क का रिफ्लेक्शन है आपका धैर्य, पहचानें इसकी कीमत


नजरिया जीने का: शांत मस्तिष्क और धैर्य के बीच गहरा संबंध है और सच्चाई तो यह है कि धैर्य एक महत्वपूर्ण गुण है जो हमें जीवन में सफलता और खुशी प्राप्त करने में मदद करता है। धैर्यवान व्यक्ति शांत रहता है और मुश्किल परिस्थितियों में भी अपना आपा नहीं खोता है। इससे आप शायद हीं इंकार करेंगे कि जब हमारा मस्तिष्क शांत होता है, तो हम बेहतर तरीके से सोच सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं। इसके साथ ही शांत रहने का सबसे अहम् लाभ यह है कि हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं, तो हम मुश्किल परिस्थितियों में भी शांत रह सकते हैं।

जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो धैर्य की कीमत को स्वीकारना हीं होगा। जब तक आपका मस्तिष्क शांत और मन गंभीर नहीं होगा आप धैर्य को अपना ही नही सकते।
और अशांत मन में धैर्य और शांति की कल्पना ही निरर्थक है क्योंकि आखिर शांति ही प्रगति और उन्नति का एकमात्र रास्ता हैं।
यह हमारा शांत मस्तिष्क और गंभीर मन हीं जो जीवन में आने वाली कठिन से कठिन  समस्याओं को भी सामना करने का मार्ग प्रशस्त करती है।
समस्याओं का आना तय है क्योंकि आखिर जीवन है तो बाधा है और सफलता के मार्ग में फूलों की उम्मीद बेमानी ही तो है। यह धैर्य हीं है जो आपके जीवन में आने वाले विपरीत परिस्थितियों से गंभीरता के साथ निबटना सिखाती है।


मस्तिष्क शांत रखने के लाभ 

अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं: जब हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं, तो हम मुश्किल परिस्थितियों में भी शांत रह सकते हैं।
स्पष्ट रूप से सोच सकते हैं: जब हम स्पष्ट रूप से सोच सकते हैं, तो हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं और मुश्किलों का सामना करने के बेहतर तरीके खोज सकते हैं।
सकारात्मक रह सकते हैं: जब हम सकारात्मक रहते हैं, तो हम मुश्किलों को चुनौतियों के रूप में देख सकते हैं और उनसे पार पा सकते हैं।
धैर्यवान बनने के लिए:

अपने मस्तिष्क को शांत करना सीखें:
ध्यान: ध्यान करने से मस्तिष्क शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है।
योग: योग करने से शरीर और मन दोनों शांत होते हैं।
गहरी सांस लेना: गहरी सांस लेने से तनाव कम होता है और मस्तिष्क शांत होता है।

सकारात्मक सोच रखें:
अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें: जब आप अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो आपको मुश्किलों का सामना करने की प्रेरणा मिलती है।
खुद पर विश्वास रखें: हमें खुद पर विश्वास रखना चाहिए और यह जानना चाहिए कि हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं।
सकारात्मक लोगों के साथ रहें: सकारात्मक लोगों के साथ रहने से आपको सकारात्मक सोच रखने में मदद मिलती है।





नजरिया जीने का @पेरेंटिंग टिप्स - माता-पिता-बच्चे के रिश्ते को ऐसे करें मजबूत


आज कि जीवन स्टाइल मे जहां सबके पास काफी हेक्टिक लाइफ सेडयूल है और घर से ऑफिस तक का स्ट्रेस सभी पेरेंट्स पर हावी हो चुका है। सवाल है कि  ऐसे लाइफ स्टाइल मे उन बच्चों के लिए हम पेरेंट्स कितना न्याय  कर पाते हैं जिनके लिए हीं हम ये तमाम स्ट्रेस लेते हैं। मत-पिता और बच्चों के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए प्यार, विश्वास और समझ की ज़रूरत होती है। यहाँ कुछ पेरेंटिंग टिप्स दिए गए हैं जो आपके रिश्ते को और बेहतर बना सकते हैं:

बच्चों के साथ समय बिताएं

तमाम व्यस्तताओं के वावजूद आप अपने बच्चों के साथ दिन का कुछ समय सिर्फ और सिर्फ उनके लिए रखें। बच्चों के साथ जब आप हों तब सिर्फ उनकी सुने  और अपनी परेशानियों को खुद से दूर रखे क्योंकि आपकी परेशानी आप से अधिक  आपके बच्चों के लिए हानिकारक हो सकती है। याद रखें, हमारी परेशानियों कि चर्चा के लिए हमारे पार्टनर हैं, बच्चे नहीं। 

बच्चों से खुलकर बात करें

बच्चों के साथ अगर आप हैं तो  सब से पहले उन्हे यह विश्वास दिलाएं कि आप सिर्फ उनके लिए उनके साथ हैं और उनकी बातों को ध्यान से सुनें। उनकी बातों को सुनने के साथ ही उनके परेशानियों को समझे कुछ ऐसे कि  वो आपसे कुछ भी छिपायें नहीं। इसके साथ ही आप उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। जब बच्चा किसी समस्या से गुज़र रहा हो, तो उसे भावनात्मक सहारा दें साथ ही उन्हें बताएं कि आप हर परिस्थिति में उनके साथ हैं।

प्रशंसा और प्रोत्साहन दें

प्रशंसा और प्रोत्साहन कि भूख भला किसे नहीं होती है। वो कहते  हैं ना  कि "प्रेम से जानवरों को भी वश मे किया जा सकता है।" बच्चों को प्रेम प्रदर्शित करें और उनकी प्रसंशा करें। बच्चों को उनकी छोटी-छोटी उपलब्धियों पर भी उनकी सराहना करें और उन्हे प्रोत्साहित करें ताकि उन्हे लगे कि उसने कुछ अच्छा किया है। 

घर में अनुशासन के लिए नियम बनाएं 

अनुशासन कि महत्व को उन्हे समझने और घर मे भी उचित माहौल रखें। खुद भी अनुसाशन का पालन करें और उन्हे यह अहसास दिलाएं कि अनुसाशन का महत्व जीवन मे कितना महत्वपूर्ण है। बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की आदतें और व्यवहार अपनाते हैं इसलिए, वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप उनसे अपेक्षा करते हैं।


नजरिया जीने का: भगवान राम के जीवन से सीखें कैसे सच्चे रिश्ते सुविधा नहीं, समर्पण से बनते हैं


हर रिश्ते की आधारशिला भरोसा है। जब आपको अपने साथी के निर्देशों पर भरोसा होता है और लगता है कि उनके इरादे उचित हैं, तो इससे शक्ति का संतुलन बनता है जो भागीदारों के बीच भावनात्मक संबंधों को लाभ पहुंचाता है। समर्पण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योंकि भागीदार स्वेच्छा से एक दूसरे के लिए बलिदान करते हैं, जिससे उनकी एकता मजबूत होती है।

सच्चाई तो यही है कि समर्पण से ही सच्चे रिश्ते बनते हैं. समर्पण की भावना से रिश्तों में दरार नहीं पड़ती. समर्पण से रिश्ते मज़बूत होते हैं और भावनात्मक संबंध गहरा होते हैं. 

मर्यादा पुरुषोतम भगवान राम का जीवन हमें काफी कुछ सिखाता है क्योंकि उनके जीवन की प्रत्येक घटना जीवन मे  संबंधों और आत्मीयता के भरोसा की बुनियाद जैसी है। कहते हैं नया की विश्ववास प्रेम की पहली सीढ़ी होती है और भगवान राम ने विश्वास के बदौलत हीं सबका दिल जीता है। 

वो एक पुत्र का धर्म निभाते हुए अपने जिन्होंने पिता की बात मानी और एक आदर्श पुत्र के रूप मे जाने गए। इसके साथ हीं भगवान राम एक आदर्श पति की भूमिका मे पत्नी की मर्यादा रखी।एक तरफ वो एक मित्र के रूप मे अपने सहयोगियों को को पर्याप्त  सम्मान दिया और सेवक को भी दोस्ती का दर्जा देने मे जरा भी संकोच नहीं किया। 

रामायण के प्रसंग का यदि आप अवलोकन करेंगे तो पाएंगे कि राम के जीवन की सबसे पहली परीक्षा तब आई जब उन्हें अयोध्या का राजा घोषित किया जाना था। लेकिन सौतेली माँ कैकेयी ने उन्हें वनवास भेजने की माँग कर दी।

 एक तरफ था राजपाठ, आराम, सम्मान। दूसरी ओर था जंगल, कष्ट और अनिश्चितता, लेकिन उन्होंने अविलंब वनवास स्वीकार किया और राज पाट को त्यागकर बिना कोई शिकायत किए, मुस्कुराकर वनवास स्वीकार को निकाल पड़ते हैं तो लक्ष्मण और सीता भी उनके साथ चलने को तैयार हो जाते हैं।  एक राजा की पत्नी होकर भी सीता जंगल की कुटिया में रहकर हर कष्ट में राम के साथ रहीं। कहा जाता है कि लक्ष्मण ने 14 वर्षों तक नींद नहीं ली और हर पल भगवान राम और सीता की सेवा मे लगे रहे। 

क्या यह रिश्ते मे एक समर्पण का भाव नहीं है?

 हमारा रिश्ता मूल रूप से आपसी सम्मान पर आधारित है। हमारे संबंध में विश्वास भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्वस्थ रिश्तों में, आपसी सम्मान और विश्वास तब प्रदर्शित होता है जब निर्णय लेने में हम एक-दूसरे के निर्णय को मानते हैं और अपनी निर्णय को थोपते हैं बल्कि एक सामंजस्य बैठाने का प्रयत्न किया जाता है। 

कठिन समय से विचलित होना कायरों का काम है

नजरिया जीने का: अपने विचारों को दीजिए खुला आकाश-बड़ा सोचें और अपने जीवन में बड़ा हासिल करें

 najariya jine ka thinking ha no limit think high achieve big


 अगर आप असीमित शब्द के सार्थकता को समझेंगे तो पाएंगे कि यह शब्द बहुत ही उपयोगी है क्योंकि यह आपको  विश्वास दिलाता है कि आप वह सब कुछ कर सकता हूं जो आप चाहते हैं। सच तो यही है कि यह आपकी असीमित सोच है जो आपके अंदर के विचारों को जागृत करता है और  संभावनाओं की याद दिलाता है, तब भी जब सारी परिस्थितियाँ मेरे विरुद्ध हों। असीमित सोच और असीमित विचारों पर विश्वास करके, आप असीमित चीजें हासिल कर सकते हैं हाँ इसके लिए पहल आपको हीं करनी होगी। नजरिया जीने का  एक ऐसा हीं मंच है जो आपके अंदर की आग को जलाने की कोशिश करती है जो क्योंकि आपके अंदर की आग सबसे बड़ी चीज है। 


सोचने की कोई सीमा नहीं है, इसलिए बड़ा सोचें और अपने जीवन में बड़ा हासिल करें क्योंकि हर व्यक्ति के अंदर अपार शक्ति है और हमें बस उसे प्रज्वलित करना है। प्रकृति ने हमें अपने जीवन में चमत्कार करने की अपार शक्ति और क्षमता प्रदान की है, लेकिन त्रासदी यह है कि हम दर्शक दीर्घा के बीच में फिट होने का आनंद लेते हैं। 
विडम्बना यह हैं कि प्रकृति ने तो हमें कोई भेदभाव नहीं किया हमें शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करने में, लेकिन यह केवल हम ही हैं जो अपनी सोच को सीमा प्रदान करते हैं, इस तथ्य के बावजूद कि आपके पास इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त शक्ति और ऊर्जा है।

आपके आस-पास होने वाली हर घटना को कुछ न कुछ सीमा प्रदान की गई है। चाहे वह सड़क हो, क्रेडिट/डेबिट कार्ड हो, आपका शरीर हो, आपके शरीर के अंग हों और यहां तक कि सभी अत्यधिक परिष्कृत और नवीनतम उपकरण हों, उनके उपयुक्त और मानक प्रदर्शन की अपनी सीमाएं हैं। 

यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।

असीमित सोच:

हमारा दिमाग शारीरिक बाधाओं से बंधा नहीं है और हम चाहें तो हम वर्तमान और सीमाओं से परे कल्पना कर सकते हैं, अन्वेषण कर सकते हैं और सपने देख सकते हैं। यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।

नजरिया जीने का: आपकी प्रसन्नता में छिपा है आपकी सफलता का रहस्य

यह केवल हम ही हैं जो इस तथ्य के बावजूद कि आपके पास इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त शक्ति और ऊर्जा है, अपनी सोच को सीमा प्रदान करते हैं। यह असीमित सोच हमें उन संभावनाओं पर विचार करने की अनुमति देती है जो पहली नज़र में संभव नहीं लगती हैं।

बड़ी सोच का महत्व:

प्रकृति ने हमें अपने जीवन में चमत्कार करने की अपार शक्ति और क्षमता प्रदान की है, लेकिन त्रासदी यह है कि हम दर्शक दीर्घा के बीच में फिट होने का आनंद लेते हैं। महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने से प्रेरणा मिलती है और हमें उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

बड़ी सोच चुनौतियों का सामना करने में नवीनता, रचनात्मकता और लचीलेपन को बढ़ावा देती है। हमें ऊंचा सोचना चाहिए और अपनी सोच को नई ऊंचाइयां प्रदान करनी चाहिए, आश्चर्यजनक रूप से हम अखबारों और टीवी समाचारों में ऐसे चमत्कार रचने वालों से गुजरते रहते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों ने अपनी सोच को नई ऊंचाई प्रदान की है और अपने जीवन में बड़ा मुकाम हासिल किया है.


संतुलन महत्वपूर्ण है-

जबकि बड़ा सोचना महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ हीं सुनिश्चित करना भी जरुरी है कि आपके लक्ष्य भी यथार्थवादी हों और आपके मूल्यों और संसाधनों के अनुरूप हों। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, सीखने, बढ़ने और उनके साथ तालमेल बिठाने की प्रक्रिया अत्यधिक मूल्यवान है। 

दुनिया में हर सफल शख्सियत ने तभी बड़ा हासिल किया है, जब उसने बड़ा सोचने का साहस किया। हमें एक मुर्ख और लापरवाह इंसान बनने की मानसिकता को बदलने के लिए तैयार रहना होगा न कि यह सोचना होगा कि प्रकृति ने हमें चमत्कार करने की सारी शक्ति और विचारों से सुसज्जित किया है।



गुरु वह शक्ति है जो अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ईश्वर की ओर ले जाती है-संजीव कृष्ण ठाकुर


संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने अपने प्रवचन में कहा, "गुरु वह शक्ति है जो शिष्य को अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ईश्वर की ओर ले जाती है।" उन्होंने संत सहजो बाई का उल्लेख करते हुए कहा कि "गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर है, क्योंकि ईश्वर तो कर्म के अनुसार फल देता है, लेकिन गुरु कृपा से भाग्य भी बदल सकता है।"

गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर दिल्ली में एक भव्य आध्यात्मिक सत्संग और गुरु महिमा समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वृंदावन से पधारे विश्वविख्यात संत संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को गुरु महिमा का महत्व समझाते हुए भागवत गीता के कई प्रसंगों के माध्यम से जीवन मूल्यों और गुरु-शिष्य परंपरा की दिव्यता का सन्देश दिया।

इस मौके पर मौजूद अतिथियो में समाजसेवी व उद्धोगपति रमेश कपूर, वरिष्ठ कांग्रेस नेता शम्भू शर्मा, ज्ञानेश्वर सिंह SHO, बीजेपी बाहरी दिल्ली जिलाध्यक्ष रामचंद्र चावरिया,  विधायक राजकुमार चौहान, निगम पार्षद धर्मबीर शर्मा, बिश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष दिनेश शर्मा,  ट्रांसजेंडर समुदाय से कमलेश, ललिता नायक, दीपचंद्र, अदीप सेतिया, अशोक शर्मा, अमित पूरी, पण्डित भोला नाथ शुक्ला, , अर्चना शुक्ला, अंशु अग्रवाल, अमर अग्रवाल, नीरज जैन, पण्डित कृष्ण शास्त्री, आचार्य प्रेम शर्मा, समाजसेवी अंजू शर्मा व राजकमल शर्मा, प्रोड्यूसर राजेश्वरी सिंह, मनोज अग्रवाल, अंकित शर्मा, विकास शर्मा, सुमित मलिक, फूलचंद अलोरिया, लक्ष्य पण्डित, अमन परवाना, मनप्रीत कौर आदि प्रमुख थे।

विश्व शांति व मानवता के दूत के रूप में सम्मान

इस अवसर पर वर्ल्ड ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन (WHRO) की ओर से संत संजीव कृष्ण ठाकुर जी को "ग्लोबल पीस एंड ह्यूमिनिटी अवॉर्ड 2025" से सम्मानित किया गया। ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन योगराज शर्मा ने ठाकुर जी को यह सम्मान एक स्मृति चिन्ह और शाल ओढ़ाकर प्रदान किया।

योगराज शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा, "संजीव कृष्ण ठाकुर जी न केवल अध्यात्म के क्षेत्र में अपितु मानवता, प्रेम और करुणा के प्रचारक के रूप में भी वैश्विक स्तर पर एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं। उनकी वाणी और जीवन-दर्शन में आज के समाज के लिए मार्गदर्शन है।"

आयोजक और अन्य सम्मान

कार्यक्रम के आयोजक अरुण शर्मा 'लक्की हिंदुस्तानी' ने मंच पर उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों, संतों और साधकों का स्वागत और सम्मान किया। इसी कार्यक्रम में WHRO दिल्ली राज्य के चेयरमैन के रूप में अरुण शर्मा को भी औपचारिक रूप से नियुक्त किया गया और सम्मान प्रदान किया गया।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी का जीवन और अध्यात्म यात्रा

संजीव कृष्ण ठाकुर जी का जन्म वृंदावन की पावन भूमि में हुआ। बाल्यकाल से ही ठाकुर जी में अध्यात्म और भक्ति के प्रति विशेष रुचि थी। उन्होंने श्रीमद्भागवत, गीता और वेद-पुराणों का गहन अध्ययन किया। ठाकुर जी अपने प्रवचनों में प्रेम मार्ग और मानव सेवा को ही सर्वोच्च धर्म बताते हैं।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी ने अब तक देश-विदेश में हजारों कथा, सत्संग और भागवत सप्ताह आयोजित किए हैं। मानवता और विश्व शांति के लिए समर्पित ठाकुर जी का उद्देश्य है कि समाज में अहिंसा, प्रेम, सद्भावना और अध्यात्मिक चेतना का प्रसार हो।

संजीव कृष्ण ठाकुर जी के श्रीमुख से सुनाई गई कथा और भजनों ने रोहिणी के इस आयोजन को दिव्यता और ऊर्जा से भर दिया। श्रद्धालुओं ने गुरु महिमा के इस दिव्य संदेश का लाभ उठाया और भाव-विभोर होकर ठाकुर जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।


रविवार, 13 जुलाई 2025

‘‘पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया’’ केवल नारा बनकर ही रह गया- कांग्रेस


दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ने दिल्ली विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट फंड और सुविधा एवं सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों की फीस में इस वर्ष भी बढ़ोतरी कि आलोचना किया है।  दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय में यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट फंड और सुविधा एवं सर्विस चार्ज के नाम पर छात्रों की फीस में इस वर्ष भी बढ़ोतरी करके अतिरिक्त बोझा डाल दिया है। पिछले तीन वर्षों में यह वृद्धि लगभग दुगनी की गई है जबकि शिक्षक समुदाय भी इस पर आपत्ति जता रहा है। 

 डेवलपमेंट फंड, सुविधा और सर्विस चार्ज कालेज में पढ़ने वाले छात्रों से लेना अनैतिक है, इसको वहन करना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने पूछा कि यह फीस वृद्धि भाजपा के के.जी. से पी.जी. तक मुफ्त शिक्षा देने के वादे के खिलाफ है जबकि दिल्ली सरकार ने दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि पर भी अभी तक कुछ नही किया है।

यह चिंताजनक है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की फीस में 20 प्रतिशत की वृद्धि करके उन पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालकर उन्हें मानसिक रुप से प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 में युनिवर्सिटी डेवलमेंट फंड और सुविधा व सर्विस चार्ज के 1500-1500 रुपये करके छात्रों से अतिरिक्त 3000 रुपये वसूले जाएंगे, इस बढ़ोतरी से दलित, वंचित, महिलाओं, कमजोर वर्ग, किसान, मजदूर, अल्पसंख्यक, ईडब्लूएस. पिछड़े वर्ग के छात्रों पर अधिक प्रभाव पड़ेगा। 

उन्होंने कहा कि भाजपा गरीब से शिक्षा को दूर करने की कोशिश कर रही है। शिक्षा का निजीकरण करके प्राईवेट संस्थानों में फीस पहले ही इतनी अधिक कर दी गई है कि उसमें कोई गरीब आदमी अपना बच्चा नही पढ़ा सकता और अब भाजपा सरकार दिल्ली विश्वविद्यालय में हर वर्ष फीस में बढ़ोतरी कर रही है।

देवेन्द्र यादव ने कहा कि भाजपा का नारा कि ‘‘पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया’’ केवल नारा बनकर ही रह गया है। जब भाजपा अगर सरकारी शिक्षण संस्थानों में फीस में अप्रत्याशित वृद्धि करेगी तो आम भारतीय के बच्चें कैसे पढ़ पाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर गंभीरता से विचार किया जाए तो स्पष्ट दिखता है कि फीस वृद्धि से लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अभी तक लोगों में यह मानसिकता है कि बेटी की जगह बेटे को पढ़ाऐं। 

फिर फीस वृद्धि के बाद कहीं न कहीं भाजपा ’बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का अपना नारा भी बेमानी साबित कर रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा की शिक्षा विरोधी नीति के कारण 12वीं के बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाली आर्थिक रुप से कमजोर परिवारों की बेटियों का सपना पूरा नही हो सकता।