सोमवार, 10 नवंबर 2025

नज़रिया जीने का: हिंसा की जड़ है अहंकार और असहिष्णुता, इसका परित्याग करें

हिंसा से आज तक कभी किसी का भला नहीं हुआ और यह जीवन और संसार का यथार्थ है लेकिन यह हमारी बदकिस्मती है कि हम सभी जानते हुए भी इसे स्वीकार नहीं करते हैं। हिंसा केवल केवल मारपीट या युद्ध हीं नहीं है, बल्कि यह तो अंजान है हमारी हिंसक सोच और विचारों का जिसे हमने युवाओं के दिमाग में बोया है। 
भगवान बुद्ध ने कहा था:“घृणा कभी घृणा से नहीं मिटती, बल्कि केवल प्रेम से मिटती है। यही शाश्वत नियम है।” लेकिन यहीं तो हमारी बदकिस्मती है कि हम सभी इसे समझने को तैयार नहीं हैं।

सच्चाई यह है कि जब हम दूसरों के प्रति करुणा रखते हैं, तब हमारे भीतर शांति जन्म लेती है और यही शांति हमारे भटके हुए युवाओं को बतानेवाल की जरूरत है जिन्हें लगता है कि हिंसा हीं समाज में स्थिरता लाती है और यही सच्ची प्रगति की नींव है।

हाल के दिनों में जिस प्रकार से हिंसा अपने वीभत्स रूप में सामने दिखी है उसने यह साबित कर दिया है कि हिंसा का कोई भी रूप हो, उसका अंतिम परिणाम हमेशा विनाश ही होता है। चाहे वह घरेलू झगड़ा हो, राजनीतिक संघर्ष या धार्मिक टकराव — अंततः दोनों पक्ष हारते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था: “जिसने अपने ऊपर विजय पा ली, वही सबसे बड़ा विजेता है।”

अगर आप इतिहास पलट कर देखेंगे तो पाएंगे कि हिंसा की शुरुआत प्रायः तब होती है जब व्यक्ति अपने अहंकार या स्वार्थ को दूसरों पर थोपना चाहता है। जब भी हमारे बीच में सहिष्णुता समाप्त होती है, तब हिंसा जन्म लेती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें