हालाँकि ऐसा नहीं है कि इसके लिए सिर्फ आज कल के नौनिहाल और बच्चों को हीं इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? आखिर आजकल की वह पीढ़ी जो अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेजकर खुद को शांति से जीने को गौरव समझती है, तो फिर उनके बच्चे अगर श्रवण कुमार को पहचानने से इंकार करे तो इसमें शायद कोई आश्चर्य भी नहीं होनी चाहिए?
श्रवण कुमार अपने माता-पिता की बहुत सेवा करता था जो कि अंधे थे और वे दोनों कुछ देख नहीं सकते थे. श्रवण कुमार काफी निर्धन थे और उन्हें अपने माता पिता तीर्थ कराने के लिए पैसा भी नहीं थी. लेकिन श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता का तीर्थयात्रा पर ले जाने के लिए तराजू की तरह कांवर बनाया और एक तरफ अपने पिता को और दूसरी तरफ अपने माता को बैठकर तीर्थयात्रा पर निकल गए थे.
श्रवण कुमार ने बताया कि उनका काँवर (बोहंगी) जिसमें अपने अंधे माता पिता को बैठकर तीर्थ के लिए चले थी, वह केवल एक भार नहीं था, बल्कि निःस्वार्थ प्रेम और अटूट समर्पण का प्रतीक था।
कल्पना हीं की जा सकती है उस माता और पिता के ख़ुशी के ठिकाने का जो देख नहीं सकते थे लेकिन उनका निर्धन पुत्र अपने कंधे पर कांवर पर तीर्थ यात्रा कराने के लिए घर से निकल गया.
क्रूर काल चक्र श्रवण कुमार की मृत्यु
जैसा की कहानी हैं, एक दिन श्रवण कुमार सरयू नदी के किनारे अपने माता-पिता के लिए पानी भरने गए थे। राजा दशरथ शिकार पर निकले हुए थे और उन्होंने जल भरने की आवाज़ को हिरण समझकर तीर चला दिया।
तीर लगने से श्रवण कुमार घायल हो गए।अयोध्या के राजा दशरथ द्वारा वृद्ध माता पिता के लिए पानी लेने पहुंचे श्रवण कुमार को हिरन समझकर तीर लग जाती है और श्रवण कुमार वहीँ प्राण त्याग देते हैं. हाँ, श्रवण कुमार राजा दशरथ को एक पेड़ दिखाते हुए कहते हैं कि आप कृपा कर मेरे वृद्ध माता पिता तक इस कमंडल के जल कको पहुंचा दें, क्योंकि अगर उन्हे अतिशीघ्र पानी नहीं पिलाया गया तो उनके प्राण निकल जायेगे।
हालाँकि कमंडल का जल लेकर राजा दशरथ श्रवण कुमार के माता-पिता जाते हैं लेकिन उनके माता पिता समझ जाते हैं कि पानी लाने वाला उनका पुत्र श्रवण नहीं है.
राजा दशरथ कहानी सुनाकर और क्षमा मांगकर भी पानी पीने के लिए प्रार्थना करते हैं लेकिन श्रवण के माता-पिता ने पानी पीने से माना कर दिया।
राजा दशरथ को श्राप
पुत्र वियोग में माता पिता व्यथित होकर दोनों राजा दशरथ को श्राप देते हुए कहते हैं कि जिस तरह हम दोनों अपने बेटे के वियोग में मर रहे हैं। एक दिन तुम भी अपने बेटे के वियोग में मरोगे।
जैसा की कहा जाता है, राजा दशरथ के बेटे प्रभु श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास हो गया और अपने बेटों के वियोग में राजा दशरथ तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए।
आज हम अपने बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजते हैं, और एक श्रवण कुमार था, जिसने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपने कंधे पर दुनिया का सबसे अनमोल बोझ उठा लिया।
श्रवण कुमार पर प्रेरणादायक विचार
- जिसने माता-पिता की सेवा की, उसने धरती पर भगवान को पा लिया।
- श्रवण कुमार की तरह जो माता-पिता की आँख बनता है, वही सच्चा पुत्र कहलाता है।
- माता-पिता का आशीर्वाद वह अमृत है, जो जीवन के हर संकट में रक्षा करता है।
- माँ-बाप की सेवा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
- श्रवण कुमार की कहानी सिर्फ कथा नहीं, हर बच्चे के लिए प्रेरणा है।

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