लेकिन याद रखें, कठिन समय में मन का विचलित होना स्वाभाविक है, पर उसी क्षण आपका साहस आपकी पहचान बनाता है क्योंकि सच यही है कि जीवन में जो तूफ़ान से नहीं डरते, वही आसमान पर राज करते हैं।
लेकिन याद रखें, कठिन समय में मन का विचलित होना स्वाभाविक है, पर उसी क्षण आपका साहस आपकी पहचान बनाता है क्योंकि सच यही है कि जीवन में जो तूफ़ान से नहीं डरते, वही आसमान पर राज करते हैं।
रोटरी इंटरनेशनल (डिस्ट्रिक्ट 3011) ने आरजीसीआईआरसी (राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर), नीति बाग के सहयोग से, अत्यधिक प्रभावशाली “गुलाबी उड़ान – अ साइक्लोथॉन इन पिंक” का सफलतापूर्वक समापन किया, जो रविवार, 9 नवंबर, 2025 को आयोजित किया गया था।
यह महिला-केंद्रित इवेंट दक्षिण दिल्ली में स्तन कैंसर जागरूकता को आक्रामक रूप से बढ़ावा देने और शीघ्र पहचान के महत्वपूर्ण, जीवन रक्षक मूल्य को बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया था। इस पहल में लगभग 250 उत्साही महिला साइकिल चालकों ने सड़कों को गुलाबी रंग की एक जीवंत लहर में बदल दिया, जिससे देश भर में हज़ारों महिलाओं को प्रभावित करने वाले इस कारण की ओर जनता का ध्यान प्रभावी ढंग से आकर्षित हुआ।
13.5 किलोमीटर का यह रूट रविवार की सुबह फादर एग्नेल स्कूल से शुरू हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने अगस्त क्रांति मार्ग, मूलचंद क्रॉसिंग, जोसेफ टीटो मार्ग और हौज खास सहित प्रमुख स्थानों को कवर किया और फिर शुरुआती बिंदु पर वापस लौटे।
इस प्रभावशाली साइक्लोथॉन को रोटरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ. रविंदर गुगननी और आरजीसीआईआरसी, नीति बाग की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. गौरी कपूर ने संयुक्त रूप से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। मिस इंडिया 2023, मिस नंदिनी गुप्ता, ने मुख्य अतिथि के रूप में इस अवसर की शोभा बढ़ाई, उन्होंने प्रतिभागियों और जनता दोनों को स्वयं-जाँच और समय पर स्वास्थ्य जाँच को चैंपियन बनाने के लिए प्रेरित किया।
साइक्लोथॉन: स्वास्थ्य यात्रा में सक्रिय होने के लिए जरुरी
रोटरी इंटरनेशनल के प्रवक्ता ने कहा “स्तन कैंसर के जोखिम को कम करने में शारीरिक गतिविधि एक महत्वपूर्ण कारक है। व्यायाम के रूप में साइकिल चलाना शरीर को मजबूत बनाता है, जो समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। गुलाबी उड़ान जैसे कार्यक्रम इन तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं और महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखने का एक मज़ेदार और प्रभावशाली तरीका प्रदान करते हैं। जागरूकता और कार्रवाई साथ-साथ चलते हैं, और हमें उम्मीद है कि यह साइक्लोथॉन महिलाओं को अपनी स्वास्थ्य यात्रा में सक्रिय होने के लिए प्रेरित करेगा।“
यह आयोजन ऐसे नाज़ुक समय पर अपना संदेश लेकर आया, जब ब्रेस्ट कैंसर भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसर बन गया है, जिसके सालाना 1,78,000 से अधिक नए मामले दर्ज किए जाते हैं।
ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम के लिए मुख्य बातें हैं: नियमित रूप से फिजिकल एक्टिविटी करना, तम्बाकू से परहेज़ करना, अल्कोहल को सीमित करना, ज़्यादा प्लांट-बेस्ड खाद्य पदार्थ खाना और बॉडी वेट स्वस्थ बनाए रखना।
यह पहचानते हुए कि कई महिलाएँ अभी भी बहुत देर से डॉक्टरी मदद लेती हैं, जिससे ट्रीटमेंट चुनौतीपूर्ण हो जाता है, इस आयोजन ने नॉलेज फैलाने और ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन को एनकरेज करने पर ध्यान केंद्रित किया, जो अर्ली डिटेक्शन और जीवन बचाने में मदद करता है।
सच्चाई यह है कि जब हम दूसरों के प्रति करुणा रखते हैं, तब हमारे भीतर शांति जन्म लेती है और यही शांति हमारे भटके हुए युवाओं को बतानेवाल की जरूरत है जिन्हें लगता है कि हिंसा हीं समाज में स्थिरता लाती है और यही सच्ची प्रगति की नींव है।
हाल के दिनों में जिस प्रकार से हिंसा अपने वीभत्स रूप में सामने दिखी है उसने यह साबित कर दिया है कि हिंसा का कोई भी रूप हो, उसका अंतिम परिणाम हमेशा विनाश ही होता है। चाहे वह घरेलू झगड़ा हो, राजनीतिक संघर्ष या धार्मिक टकराव — अंततः दोनों पक्ष हारते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था: “जिसने अपने ऊपर विजय पा ली, वही सबसे बड़ा विजेता है।”
अगर आप इतिहास पलट कर देखेंगे तो पाएंगे कि हिंसा की शुरुआत प्रायः तब होती है जब व्यक्ति अपने अहंकार या स्वार्थ को दूसरों पर थोपना चाहता है। जब भी हमारे बीच में सहिष्णुता समाप्त होती है, तब हिंसा जन्म लेती है।
हम अपने ऊपर अपने उम्र को हावी कर खुद को उम्र के वास्तविक पड़ाव का आभास कराकर खुद को बुजुर्ग या हारा हुआ मान लेते हैं जबकि सच्चाई यह है कि अक्सर ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत शुरुआत 50 या 60 की उम्र में होती है।
आपको पता होनी चाहिए कि कर्नल सैंडर्स ने अपनी पहली KFC फ्रैंचाइज़ी 62 साल की उम्र में शुरू की थी और आज KFC दुनिया में किसीपरिचय की मोहताज नहीं है.
गांधीजी ने 45 साल की उम्र के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और अगर गांधीजी ने सोचा होता कि इस उम्र में कुछ हासिल नहीं किया जा सकता तो, फिर कहानी कुछ और होती.
अरुणा वासुदेवन आज जानी मानी यूटूबर हैं जिन्होंने 70 की उम्र में कुकिंग चैनल शुरू किया — “Grandma’s Kitchen”का आरम्भ किया.
सच्चाई यह है कि सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती, बस हिम्मत करनी होती है उन्हें सच करने की.
कहने का मतलब यह है कि जीवन का हर दौर कुछ नया सिखाता है बस शर्त यह है कि और अगर हम सीखने और आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं. शारीरिक अवस्था पर हमारा कुछ अधिकार नहीं होता और यह जीवन का सच्चाई है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अगर हम सोच में युवा हैं तो फिर शारीरिक अवस्था कभी बाधा बन भी नहीं सकती है.
विख्यात अभिनेता देव आनंद जिन्हे बॉलीवुड में एवरग्रीन युथ के नाम से जाना जाता है, आप सहज हीं अंदाजा लगा सकते कि देव आनंद साहब की युथ सोच का क्या असर था उनके चाहने वालों पर.
विश्वास कीजिये, जीवन में मिला हर नया दिन एक मौका है, कुछ नया करने का, चाहे उम्र कुछ भी हो बस शर्त यह है कि हमें सोच युवा होनी चाहिए.
भगवान राम का जीवन एक आदर्श जीवन के रूप में माना जाता है, जहाँ उन्होंने जीवन की अनेक चुनौतियों का सामना धैर्य, साहस और समर्पण के साथ किया। उनके जीवन से कई महत्वपूर्ण सीखें ली जा सकती हैं जो हमें जीवन में सही दृष्टिकोण अपनाने में मदद करती हैं। भगवान राम के जीवन से सबसे बड़ी सीख यह मिलती है कि जब जीवन कठिन हो, तब शिकायत के बजाय धैर्य और विश्वास बनाए रखें। अगर आप भगवन राम के जीवन पर गौर करेंगे तो पाएंगे की वनवास पर गए और इसके लिए उन्होंने राज्य, सुख-सुविधा और परिवार को त्याग दिया, उन्होंने कभी शिकायत नहीं की। कहते हैं न की परिस्थितियों देने से अच्छा है कि या तो हम उन्हें बदलें या फिर उन्हें ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार कर लें।
धैर्य और सहनशीलता: भगवान राम ने वनवास के दौरान और रावण के साथ युद्ध में अत्यधिक धैर्य और सहनशीलता का परिचय दिया। जीवन में जब कठिनाइयाँ आती हैं, तो धैर्य रखना और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित रखना आवश्यक होता है।
कर्तव्यपरायणता: भगवान राम ने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए राजसुख को त्याग कर वनवास स्वीकार किया। यह हमें सिखाता है कि जीवन में कर्तव्य का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
सच्चाई और न्याय: राम ने हमेशा सत्य और न्याय का पालन किया, चाहे परिणाम कुछ भी हो। यह हमें सिखाता है कि सत्य के मार्ग पर चलने से हमें जीवन में अंततः सफलता और सम्मान मिलता है।भले ही हालात विपरीत हों, भगवान राम ने कभी धर्म का त्याग नहीं किया। रावण से युद्ध भी धर्म की रक्षा के लिए लड़ा गया था।
संबंधों का सम्मान: भगवान राम ने हमेशा इस वास्तविकता को साबित किया कि रिश्तों की नींव सम्मान, त्याग और सच्चाई पर टिकती है और उनके जीवन पर अगर करें तो पाएंगे किभगवान् राम ने न केवल इंसानों के साथ बल्कि जटायु, हनुमान, सुग्रीव, जैसों के साथ भी रिश्तों की मर्यादा को निभाया।
राम ने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के साथ हीं भ्राता लक्ष्मण और भरत के प्रति कर्तव्य निभाया। उन्होंने हर रिश्ते की मर्यादा का आदर किया।
विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टिकोण: रावण के साथ युद्ध के समय भी, भगवान राम ने कभी नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाया। उन्होंने सदा सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ कठिनाइयों का सामना किया। जीवन में विपरीत परिस्थितियों का आना स्वाभाविक है और इससे कोई भी बच नहीं सकता. भगवान् राम का जीवन भी इसका अपवाद नहीं था. आप देखेंगे तो भगवान् राम ने भी अपने जीवन में अनगिनत विपरीत परिस्थितियों का सामना किया खासतौर पर वनवास के समय. इस दौरान भगवान राम ने हनुमान, सुग्रीव और विभीषण जैसे सच्चे मित्र बनाए और एक नई शक्ति का निर्माण किया।
कहने का तात्पर्य यह है जीवन की मुश्किलें हमें नए अनुभव और नए साथी देती हैं लेकिन भगवन राम के तरह उन्हें अवसर की तरह अपनाइए।
इन सबक से हमें यह समझ में आता है कि जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए। भगवान राम का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाता है कि कैसे हर परिस्थिति में सही नजरिया अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।
हालाँकि ऐसा नहीं है कि इसके लिए सिर्फ आज कल के नौनिहाल और बच्चों को हीं इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? आखिर आजकल की वह पीढ़ी जो अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेजकर खुद को शांति से जीने को गौरव समझती है, तो फिर उनके बच्चे अगर श्रवण कुमार को पहचानने से इंकार करे तो इसमें शायद कोई आश्चर्य भी नहीं होनी चाहिए?
श्रवण कुमार अपने माता-पिता की बहुत सेवा करता था जो कि अंधे थे और वे दोनों कुछ देख नहीं सकते थे. श्रवण कुमार काफी निर्धन थे और उन्हें अपने माता पिता तीर्थ कराने के लिए पैसा भी नहीं थी. लेकिन श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता का तीर्थयात्रा पर ले जाने के लिए तराजू की तरह कांवर बनाया और एक तरफ अपने पिता को और दूसरी तरफ अपने माता को बैठकर तीर्थयात्रा पर निकल गए थे.
श्रवण कुमार ने बताया कि उनका काँवर (बोहंगी) जिसमें अपने अंधे माता पिता को बैठकर तीर्थ के लिए चले थी, वह केवल एक भार नहीं था, बल्कि निःस्वार्थ प्रेम और अटूट समर्पण का प्रतीक था।
कल्पना हीं की जा सकती है उस माता और पिता के ख़ुशी के ठिकाने का जो देख नहीं सकते थे लेकिन उनका निर्धन पुत्र अपने कंधे पर कांवर पर तीर्थ यात्रा कराने के लिए घर से निकल गया.
जैसा की कहानी हैं, एक दिन श्रवण कुमार सरयू नदी के किनारे अपने माता-पिता के लिए पानी भरने गए थे। राजा दशरथ शिकार पर निकले हुए थे और उन्होंने जल भरने की आवाज़ को हिरण समझकर तीर चला दिया।
तीर लगने से श्रवण कुमार घायल हो गए।अयोध्या के राजा दशरथ द्वारा वृद्ध माता पिता के लिए पानी लेने पहुंचे श्रवण कुमार को हिरन समझकर तीर लग जाती है और श्रवण कुमार वहीँ प्राण त्याग देते हैं. हाँ, श्रवण कुमार राजा दशरथ को एक पेड़ दिखाते हुए कहते हैं कि आप कृपा कर मेरे वृद्ध माता पिता तक इस कमंडल के जल कको पहुंचा दें, क्योंकि अगर उन्हे अतिशीघ्र पानी नहीं पिलाया गया तो उनके प्राण निकल जायेगे।
हालाँकि कमंडल का जल लेकर राजा दशरथ श्रवण कुमार के माता-पिता जाते हैं लेकिन उनके माता पिता समझ जाते हैं कि पानी लाने वाला उनका पुत्र श्रवण नहीं है.
राजा दशरथ कहानी सुनाकर और क्षमा मांगकर भी पानी पीने के लिए प्रार्थना करते हैं लेकिन श्रवण के माता-पिता ने पानी पीने से माना कर दिया।
पुत्र वियोग में माता पिता व्यथित होकर दोनों राजा दशरथ को श्राप देते हुए कहते हैं कि जिस तरह हम दोनों अपने बेटे के वियोग में मर रहे हैं। एक दिन तुम भी अपने बेटे के वियोग में मरोगे।
जैसा की कहा जाता है, राजा दशरथ के बेटे प्रभु श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास हो गया और अपने बेटों के वियोग में राजा दशरथ तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए।
आज हम अपने बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजते हैं, और एक श्रवण कुमार था, जिसने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपने कंधे पर दुनिया का सबसे अनमोल बोझ उठा लिया।
श्रवण कुमार पर प्रेरणादायक विचार
अगर आप इस कहावत की गंभीरता पर विचार करेंगे तो पाएंगे कि इसके कई फायदे हैं। सबसे पहले, यह हमें विनम्र और सम्मानजनक बनाता है। जब हम दूसरों को सुनते हैं, तो हम उनके विचारों और भावनाओं को महत्व देते हैं। यह हमें एक बेहतर संवादी बनाता है और दूसरों के साथ हमारे संबंधों को मजबूत करता है।
नजरिया जीने का: कठिन समय से कायर भागते हैं, सामना करने की कला सीखें
याद रखें-"दिखावे से कुछ समय के लिए वाहवाही मिल सकती है, पर सम्मान केवल सच्चाई से मिलता है।"
“शोर मचाने वाले पेड़ नहीं, फल देने वाले पेड़ झुके रहते हैं।”
जानकारी से हमेशा काम बोलने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह आदत हमें दूसरों से सीखने में मदद करता है। जब हम दूसरों को सुनते हैं, तो हम नए विचारों और सूचनाओं से परिचित होते हैं। यह हमें अपने ज्ञान और समझ को बढ़ाने में मदद करता है।
"दिखावा करना एक ऐसा भार है, जिसे उठाने में सुकून खो जाता है।"
कहते हैं नया कि जो आप हैं, वही बने रहें। दिखावा करना या झूठे आडंबर से खुद को बढ़ चढ़कर पेश करने भले आपको अस्थाई पहचान देगा, लेकिन सच्चाई स्थाई सम्मान।
"जो दिखावा करता है, वह अपनी पहचान खो देता है।"
एक बार कलामिति नाम का एक राजा था, जिसके देश पर पड़ोसी युद्धप्रिय राजा ब्रह्मदत्त ने विजय प्राप्त कर ली थी। राजा कलामिति अपनी पत्नी और पुत्र के साथ कुछ समय तक छिपे रहने के बाद, बंदी बना लिए गए, लेकिन सौभाग्य से उनका पुत्र, राजकुमार, बच निकलने में सफल रहा।
राजकुमार ने अपने पिता को बचाने का कोई रास्ता ढूँढ़ने की कोशिश की, लेकिन व्यर्थ। अपने पिता की फाँसी के दिन, राजकुमार भेष बदलकर फाँसी स्थल में पहुँच गया, जहाँ वह अपने दुर्भाग्यशाली पिता की मृत्यु को धिक्कार के साथ देखने के अलावा कुछ नहीं कर सका।
पिता ने भीड़ में अपने पुत्र को देखा और मानो खुद से बात कर रहे हों, बुदबुदाया, "ज़्यादा देर तक मत ढूँढ़ो; जल्दबाज़ी मत करो; आक्रोश को केवल भूलकर ही शांत किया जा सकता है।"
बाद में, राजकुमार ने लंबे समय तक बदला लेने का कोई रास्ता ढूँढ़ा। अंततः उसे ब्रह्मदत्त के महल में एक सेवक के रूप में नियुक्त किया गया और वह राजा का अनुग्रह प्राप्त कर लिया ।
एक दिन जब राजा शिकार पर गया, राजकुमार नेबदला लेने का कोई अवसर ढूँढ़ा। राजकुमार अपने स्वामी को एकांत स्थान पर ले जाने में सफल रहा, और राजा, बहुत थका हुआ होने के कारण, राजकुमार की गोद में सिर रखकर सो गया, क्योंकि उसे राजकुमार पर पूरा भरोसा हो गया था।
राजकुमार ने अपना खंजर निकाला और उसे राजा के गले पर रख दिया, लेकिन फिर हिचकिचाया। उसके पिता द्वारा उसे फाँसी दिए जाने के समय कहे गए शब्द उसके मन में कौंध गए और फिर भी उसने कोशिश की, फिर भी वह राजा को नहीं मार सका।
अचानक राजा की नींद खुली और उसने राजकुमार को बताया कि उसने एक बुरा सपना देखा था जिसमें राजा का पुत्र उसे मारने की कोशिश कर रहा था।
राजकुमार ने हाथ में खंजर लहराते हुए, जल्दी से राजा को पकड़ लिया और खुद को राजा कलामिति का पुत्र बताते हुए घोषणा की कि आखिरकार अब समय आ गया है कि वह अपने पिता का बदला ले। फिर भी वह ऐसा नहीं कर सका, और अचानक उसने अपना खंजर नीचे रख दिया और राजा के सामने घुटनों के बल गिर पड़ा।
जब राजा ने राजकुमार की कहानी और अपने पिता के अंतिम शब्द सुने, तो वह बहुत प्रभावित हुआ और राजकुमार से क्षमा मांगी। बाद में, उसने राजकुमार को उसका पूर्व राज्य वापस कर दिया और उनके दोनों देश लंबे समय तक मित्रता में रहे।
राजा कलामिति के अंतिम शब्द, "लंबे समय तक खोज मत करो," का अर्थ है कि नाराजगी को लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए, और "जल्दबाजी में काम मत करो" का अर्थ है कि दोस्ती को जल्दबाजी में नहीं तोड़ना चाहिए।
जाहिर है, आप खुद के घरों के शांति के लिए दूसरों के स्टेटस और अपडेट को जिम्मेदार नहीं बता सकते, लेकिन आप अपनी घरों की सुख और शांति के लिए कारण तो बन सकते हैं. दोस्तों भले हीं आपको यह विषय निरर्थक और अप्रासंगिक लगे, लेकिन अगर आप विचार करेंगे तो पाएंगे की आज लोग खासतौर पर महिलायें इस गंभीर बीमारी से ग्रसित हो कर खुद अपनी और अपने घर की मानसिक शांति को भंग कर रही है.
कहने की जरुरत नहीं है कि आज व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल साइट्स पर अपने स्टेटस को डालना और दूसरों के अपडेट को देखना हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुका है। निश्चित हीं इस प्रकार की स्टेटस और अपडेट डालना कोई गलत नहीं क्योंकि आज के समय में आखिर अपनी भावनाएं, विचार, खुशियाँ और कभी-कभी दुख भी स्टेटस के रूप में शेयर से हम अपनों के साथ जुड़े भी रहते हैं. लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी सी सीधी और सहज है?
दूसरों के स्टेटस से खुद को जोड़ना गलत
आप चाहें तो खुद की मानसिक स्थिति या खास तौर पर महिलाओं के स्टेटस अपडेट पर प्रतिक्रिया को देखेंगे तो पाएंगे कि कई बार हम किसी का स्टेटस देखकर अनावश्यक रूप से परेशान या असुरक्षित महसूस करने लगते हैं, जो हमारी मानसिक शांति के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है।ह म किसी के स्टेटस को देखकर सोच लेते हैं कि वह हमारे लिए ही कुछ कहना चाहता है जबकि कोई खास व्यक्ति अपने गतिविधियों या किसी आयोजन को लेकर सिर्फ अपडेट मात्र करता है लेकिन विडम्बना यह है कि हम ईर्ष्यालु पोस्ट समझकर खुद की मानसिक शांति को ख़राब करते हैं. जबकि असलियत में वह किसी और परिस्थिति या मूड के तहत लिखा गया हो सकता है। हर बात को अपने ऊपर लेना आत्म-पीड़ा का कारण बनता है।
मानसिक शांति दूसरे की स्टेटस से कहीं ज़्यादा कीमती
अक्सर आप देखेंगे की जब कभी हम हम दूसरों के महंगे गिफ्ट, यात्रा या खुशियों से भरे स्टेटस देखते हैं, तो हम इस प्रकार से नहीं लेते जैसे की उसने सिर्फ हमें बताया है आया अपना सुख वाला मोमेंट शेयर किया है. हमारे मन में उसे अपडेट या स्टेटस के प्रति खुद के में तुलना
का भाव आने लगती है जो हमारे घर की सुख शांति और परिवार के अपने व्यक्तिगत सौहार्द को ख़राब करता है. तुलना हमेशा से गलत होता है और इसका असर हमेशा से ख़राब होता है अगर यह अपना नेचुरल भाव खो देता है. हम यह भूल जाते हैं कि सोशल मीडिया सिर्फ दिखाने का मंच है, सच्चाई नहीं और यह सोच हमारे आत्मविश्वास और संतोष को कम करके अपने परिवार के अंदर की शांति को ख़राब करती है.
मानसिक अवसाद को बढ़ाती है
कई बार किसी दूसरे के स्टेटस या अपडेट हमें अनावश्यक रूप से गुस्सा, ईर्ष्या या दुख का भाव उत्पन्न करता है जो लगातार होने पर मानसिक रूप से अवसाद उत्पन्न करता है. लोग ऐसे स्थिति खुद को असहाय समझने लगते हैं और अपने ऊपर तरस खाना शुरू कर देते हैं. अक्सर ऐसे समय लोग खुद पर नियंत्रण खो देते हैं और बार-बार वह स्टेटस देखने लगते हैं। ऐसा करना अपने भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है क्योंकि जितना ध्यान उस पर देंगे, उतनी बेचैनी बढ़ेगी आपकी मानसिक अशांति को बढ़ाएंगी.
अपनी ऊर्जा का सद्युपयोग करें, गंवाएं नहीं
हम इस कदर खुद से कट चुके हैं कि दिन के आरम्भ में हम पहले अपने बारे में और अपने जरुरी कार्यों के बारे में नहीं सोचते जिसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए. लेकिन दूसरों के स्टेटस और अपडेट को देखना हमने ज्यादा जरुरी प्रतीत होता है. हम अपनी प्राथमिकताओं की अनदेखी कर दूसरों के स्टेटस पर प्रतिक्रिया देने में समय गंवाते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि अगर हम वही ऊर्जा अगर हम सीखने, पढ़ने या खुद को सुधारने में लगाएँ, तो जीवन कहीं अधिक शांत और समृद्ध बन सकता है।
आपके आस-पास होने वाली हर घटना को कुछ न कुछ सीमा प्रदान की गई है। चाहे वह सड़क हो, क्रेडिट/डेबिट कार्ड हो, आपका शरीर हो, आपके शरीर के अंग हों और यहां तक कि सभी अत्यधिक परिष्कृत और नवीनतम उपकरण हों, उनके उपयुक्त और मानक प्रदर्शन की अपनी सीमाएं हैं।
यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।
हमारा दिमाग शारीरिक बाधाओं से बंधा नहीं है और हम चाहें तो हम वर्तमान और सीमाओं से परे कल्पना कर सकते हैं, अन्वेषण कर सकते हैं और सपने देख सकते हैं। यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।
यह केवल हम ही हैं जो इस तथ्य के बावजूद कि आपके पास इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त शक्ति और ऊर्जा है, अपनी सोच को सीमा प्रदान करते हैं। यह असीमित सोच हमें उन संभावनाओं पर विचार करने की अनुमति देती है जो पहली नज़र में संभव नहीं लगती हैं।
प्रकृति ने हमें अपने जीवन में चमत्कार करने की अपार शक्ति और क्षमता प्रदान की है, लेकिन त्रासदी यह है कि हम दर्शक दीर्घा के बीच में फिट होने का आनंद लेते हैं। महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने से प्रेरणा मिलती है और हमें उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
बड़ी सोच चुनौतियों का सामना करने में नवीनता, रचनात्मकता और लचीलेपन को बढ़ावा देती है। हमें ऊंचा सोचना चाहिए और अपनी सोच को नई ऊंचाइयां प्रदान करनी चाहिए, आश्चर्यजनक रूप से हम अखबारों और टीवी समाचारों में ऐसे चमत्कार रचने वालों से गुजरते रहते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों ने अपनी सोच को नई ऊंचाई प्रदान की है और अपने जीवन में बड़ा मुकाम हासिल किया है.
संतुलन महत्वपूर्ण है-
जबकि बड़ा सोचना महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ हीं सुनिश्चित करना भी जरुरी है कि आपके लक्ष्य भी यथार्थवादी हों और आपके मूल्यों और संसाधनों के अनुरूप हों। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, सीखने, बढ़ने और उनके साथ तालमेल बिठाने की प्रक्रिया अत्यधिक मूल्यवान है।
दुनिया में हर सफल शख्सियत ने तभी बड़ा हासिल किया है, जब उसने बड़ा सोचने का साहस किया। हमें एक मुर्ख और लापरवाह इंसान बनने की मानसिकता को बदलने के लिए तैयार रहना होगा न कि यह सोचना होगा कि प्रकृति ने हमें चमत्कार करने की सारी शक्ति और विचारों से सुसज्जित किया है।
अब यह निर्भर हम पर करता है कि इन कठिन समय का सामना करने को हैं तैयार हैं या अपने पीठ दिखा कर भाग जाते हैं. लेकिन इतना तो तय है कि जो व्यक्ति कठिनाइयों से डरकर भाग जाता है, और समस्याओं से मुंह मोड़ लेता है, वही कायर कहलाता है और उसके लिए यह जीवन बोझ की तरह है क्योंकि जीवन एक रण क्षेत्र है वह एक हरा और कायर सैनिक बनकर जीने का रास्ता चुनता है.
वहीं दूसरी और जो वीर होते हैं वे कठिनाइयों को अवसर की तरह देखते हैं और वे संघर्ष करके सफलता की राह तैयार करते हैं जिन्हे संसार एक सफल और योद्धा की तरह याद करता है.
याद रखें, एक तीर को कमान से छोड़ने से पहले उसे पीछे की ओर खींचना जरुरी होता है, अतः हमारे जीवन का कठिन समय इस बात का संकेत है कि हमने एक कदम तो पीछे ले लिया है लेकिन इसका मतलब यह भी है कि हम जीवन में एक लंबी छलांग लगाने के लिए तैयार हैं .
कठिन समय में विचलित होने के जगह हम इन टिप्स की मदद से खुद को मजबूत और सकारात्मक बनाये रख सकते हैं
धैर्य रखें :
यह समझना महत्वपूर्ण है कि कठिन समय हमेशा के लिए नहीं रहते हैं। धैर्य रखने से हमें मुश्किलों का सामना करने में मदद मिलती है। जो कठिनाइयों से डरता है, वह न तो कभी जीवन की ऊँचाइयों को छू सकता है और न हीं वह दुनिया के लिए कोई अनुकरणीय पदचिन्ह छोड़ पाता है. जीवन की सच्चाई भी यही है कि कठिन समय में जो डटा रहता है, वही इतिहास बनाता है।
तू छोड़ ये आंसू उठ हो खड़ा,
मंजिल की ओर अब कदम बढ़ा,
हासिल कर इक मुकाम नया,
पन्ना इतिहास में जोड़ दे,
घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,
-नरेंद्र वर्मा
सकारात्मक रहें :
नकारात्मक विचारों में डूबने के बजाय, हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। हमें यह खुद को समझाना होगा कि जीवन में जिसे हम ख़राब समय या बुरा समय कहते हैं, वह हर संघर्ष हमें और मजबूत बनाने आया है, न कि हमें तोड़ने और हमारी मजबूत इरादे को डिगाने आया है.
कमजोरियों का सामना करें :
कठिन समय हमें अपनी कमजोरियों का पता लगाने और उन्हें दूर करने का मौका देता है। कठिन समय हमें अपनी गलतियों से सीखने और भविष्य में उन्हें दोहराने से बचने का मौका देता है।
मदद लेने में नहीं हिचकें :
कठिन समय में हमें दूसरों की मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। सकारात्मक और आशावादी रवैया अपनाकर, इन परिस्थितियों से बिना घबराए इनका सामना करने का साहस दिखाना ही बहादुरी है.ये कठिन समय आपके जीवन की दौड़ के रास्ते में कोई बाधा नहीं है... वास्तव में प्रकृति आपके धैर्य की परीक्षा लेने की प्रक्रिया में है जिसके परिणामस्वरूप आप मजबूत बनेंगे.
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
-अटल बिहारी वाजपेयी
मन की बात में प्रधानमंत्री ने ऐसे हीं एक मोटिवेशनल घटना का वर्णन किया था जो खासतौर पर इंस्पायरिंग और उत्साहवर्धक है. प्रधानमंत्री ने बताया था "प्रकृत् अरिवगम्" लाइब्रेरी के बारे में जो आपको भी इंस्पायर करेगी.
प्रधानमंत्री ने बच्चों की पढ़ाई को लेकर कहा था कि आज कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं। कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में creativity और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े – कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, Library से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी।
श्रीराम गोपालन जी की कहानी
इस सन्दर्भ में प्रधानमंत्री ने चेन्नई का एक उदाहरण share करते हुए बताया कि वहां बच्चों के लिए एक ऐसी library तैयार की गई है, जो, creativity और learning का Hub बन चुकी है। इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है। इस library का ।dea, technology की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है।
विदेश में अपने काम के दौरान उन्होंने latest technology की दुनिया से जुड़े रहने के बावजूद वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे। भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया।
तीन हजार से अधिक किताबें
इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है। किताबों के अलावा इस library में होने वाली कई तरह की activities भी बच्चों को लुभाती हैं। Story Telling session हो, Art Workshops हो, Memory Training Classes, Robotics Lesson या फिर Public Speaking, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है।
जाहिर है कि श्रीराम गोपालन जी की कहानी काफी इंस्पायरिंग और मोटिवेशनल है और नजरिया जीने द्वारा प्रस्तुत इस स्टोरी के माध्यम से आप भी निश्चित हीं मोटिवेटेड होंगे.
(श्रोत-प्रधानमंत्री द्वारा प्रस्तुत मन की बात कार्यक्रम से )