मंगलवार, 11 नवंबर 2025

फाइट अगेंस्ट ब्रेस्ट कैंसर: जानें क्या है "ए साइक्लोथॉन इन पिंक"


आरजीसीआईआरसी, नीति बाग की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. गौरी कपूर ने इवेंट में अपने संबोधन के दौरान मिशन की अत्यावश्यकता को दोहराया: "स्तन कैंसर जागरूकता आज की दुनिया में अत्यंत महत्वपूर्ण है, और 'गुलाबी उड़ान' जैसे इवेंट शीघ्र पहचान और रोकथाम के संदेश को फैलाने में महत्वपूर्ण हैं। हमें इस पहल का समर्थन करने पर गर्व है, क्योंकि साइकिल चलाना न केवल फिटनेस को बढ़ावा देता है बल्कि एक ऐसे कारण की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है जो इतनी सारी महिलाओं को प्रभावित करता है। अपने भागीदारों के साथ मिलकर, हम आशा करते हैं कि अधिक महिलाएँ स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित होंगी।"

रोटरी इंटरनेशनल (डिस्ट्रिक्ट 3011) ने आरजीसीआईआरसी (राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर), नीति बाग के सहयोग से, अत्यधिक प्रभावशाली “गुलाबी उड़ान – अ साइक्लोथॉन इन पिंक” का सफलतापूर्वक समापन किया, जो रविवार, 9 नवंबर, 2025 को आयोजित किया गया था।

यह महिला-केंद्रित इवेंट दक्षिण दिल्ली में स्तन कैंसर  जागरूकता को आक्रामक रूप से बढ़ावा देने और शीघ्र पहचान के महत्वपूर्ण, जीवन रक्षक मूल्य को बढ़ाने के लिए आयोजित किया गया था। इस पहल में लगभग 250 उत्साही महिला साइकिल चालकों ने सड़कों को गुलाबी रंग की एक जीवंत लहर में बदल दिया, जिससे देश भर में हज़ारों महिलाओं को प्रभावित करने वाले इस कारण की ओर जनता का ध्यान प्रभावी ढंग से आकर्षित हुआ।

13.5 किलोमीटर का यह रूट रविवार की सुबह फादर एग्नेल स्कूल से शुरू हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने अगस्त क्रांति मार्ग, मूलचंद क्रॉसिंग, जोसेफ टीटो मार्ग और हौज खास सहित प्रमुख स्थानों को कवर किया और फिर शुरुआती बिंदु पर वापस लौटे।

इस प्रभावशाली साइक्लोथॉन को रोटरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉ. रविंदर गुगननी और आरजीसीआईआरसी, नीति बाग की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. गौरी कपूर ने संयुक्त रूप से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। मिस इंडिया 2023, मिस नंदिनी गुप्ता, ने मुख्य अतिथि के रूप में इस अवसर की शोभा बढ़ाई, उन्होंने प्रतिभागियों और जनता दोनों को स्वयं-जाँच और समय पर स्वास्थ्य जाँच को चैंपियन बनाने के लिए प्रेरित किया।

साइक्लोथॉन: स्वास्थ्य यात्रा में सक्रिय होने के लिए जरुरी 

रोटरी इंटरनेशनल के प्रवक्ता ने कहा  “स्तन कैंसर के जोखिम को कम करने में शारीरिक गतिविधि एक महत्वपूर्ण कारक है। व्यायाम के रूप में साइकिल चलाना शरीर को मजबूत बनाता है,  जो समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। गुलाबी उड़ान जैसे कार्यक्रम इन तथ्यों की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं और महिलाओं को अपने स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखने का एक मज़ेदार और प्रभावशाली तरीका प्रदान करते हैं। जागरूकता और कार्रवाई साथ-साथ चलते हैं, और हमें उम्मीद है कि यह साइक्लोथॉन महिलाओं को अपनी स्वास्थ्य यात्रा में सक्रिय होने के लिए प्रेरित करेगा।“

भारत में सालाना 1,78,000 मामले

यह आयोजन ऐसे नाज़ुक समय पर अपना संदेश लेकर आया, जब ब्रेस्ट कैंसर भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसर बन गया है, जिसके सालाना 1,78,000 से अधिक नए मामले दर्ज किए जाते हैं।

ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम के लिए मुख्य बातें

 ब्रेस्ट कैंसर की रोकथाम के लिए मुख्य बातें हैं: नियमित रूप से फिजिकल एक्टिविटी करना, तम्बाकू से परहेज़ करना, अल्कोहल को सीमित करना, ज़्यादा प्लांट-बेस्ड खाद्य पदार्थ खाना और बॉडी वेट स्वस्थ बनाए रखना। 

यह पहचानते हुए कि कई महिलाएँ अभी भी बहुत देर से डॉक्टरी मदद लेती हैं, जिससे ट्रीटमेंट चुनौतीपूर्ण हो जाता है, इस आयोजन ने नॉलेज फैलाने और ब्रेस्ट सेल्फ एग्जामिनेशन को एनकरेज करने पर ध्यान केंद्रित किया, जो अर्ली डिटेक्शन और जीवन बचाने में मदद करता है। 




नज़रिया जीने का: हिंसा की जड़ है अहंकार और असहिष्णुता, इसका परित्याग करें

हिंसा से आज तक कभी किसी का भला नहीं हुआ और यह जीवन और संसार का यथार्थ है लेकिन यह हमारी बदकिस्मती है कि हम सभी जानते हुए भी इसे स्वीकार नहीं करते हैं। हिंसा केवल केवल मारपीट या युद्ध हीं नहीं है, बल्कि यह तो अंजान है हमारी हिंसक सोच और विचारों का जिसे हमने युवाओं के दिमाग में बोया है। 
भगवान बुद्ध ने कहा था:“घृणा कभी घृणा से नहीं मिटती, बल्कि केवल प्रेम से मिटती है। यही शाश्वत नियम है।” लेकिन यहीं तो हमारी बदकिस्मती है कि हम सभी इसे समझने को तैयार नहीं हैं।

सच्चाई यह है कि जब हम दूसरों के प्रति करुणा रखते हैं, तब हमारे भीतर शांति जन्म लेती है और यही शांति हमारे भटके हुए युवाओं को बतानेवाल की जरूरत है जिन्हें लगता है कि हिंसा हीं समाज में स्थिरता लाती है और यही सच्ची प्रगति की नींव है।

हाल के दिनों में जिस प्रकार से हिंसा अपने वीभत्स रूप में सामने दिखी है उसने यह साबित कर दिया है कि हिंसा का कोई भी रूप हो, उसका अंतिम परिणाम हमेशा विनाश ही होता है। चाहे वह घरेलू झगड़ा हो, राजनीतिक संघर्ष या धार्मिक टकराव — अंततः दोनों पक्ष हारते हैं। स्वामी विवेकानंद ने कहा था: “जिसने अपने ऊपर विजय पा ली, वही सबसे बड़ा विजेता है।”

अगर आप इतिहास पलट कर देखेंगे तो पाएंगे कि हिंसा की शुरुआत प्रायः तब होती है जब व्यक्ति अपने अहंकार या स्वार्थ को दूसरों पर थोपना चाहता है। जब भी हमारे बीच में सहिष्णुता समाप्त होती है, तब हिंसा जन्म लेती है।

सोमवार, 10 नवंबर 2025

नजरिया जीने का: जब मन कहे ‘सब खत्म है’ – तब जानें खुद को कैसे संभालें


नकारात्मक विचारों का आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है ऐसा नहीं है कि बड़े और सफल व्यक्तित्व वाले लोगों  को भी इससे गुजरना पड़ता है. हर इंसान के मन में कभी न कभी नकारात्मक विचार आते हैं लेकिन यह जानना जरुरी है कि इन नकारात्मक विचारों  से  आप  कितना जल्दी निकलते हैं क्योंकि अगर आप इनके इन्फ्लुएंस में आ  गए तो फिर आप पॉजिटिव विचारों से दूर हो सकते हैं. याद रखें, नकारात्मक विचारों को खुद से दूर रखना ज्यादा जरुरी है क्योंकि ये आते तो सबके दिमाग में हैं, लेकिन इससे निकलना सभी को नहीं आता क्योंकि हम खुद को मोटिवेट करने के टेक्निक से वाकिफ नहीं होता या नकारात्मक विचारों के गिरफ्त में बुरी तरह से फंस चुके होते हैं. 

जब ये विचार बार-बार आने लगें और लंबे समय तक टिके रहें, तो यह एक मानसिक ट्रैप की तरह हमें अपने गिरफ्त में ले लेता है जो  न केवल हमारे आत्मविश्वास को कमजोर करता है, बल्कि हमारे व्यवहार, निर्णय और स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है।

खुद से सवाल करें 

नकारात्मक विचारों का दौर हर किसी के जीवन में आता है, लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि विचारों को नियंत्रित किया जा सकता है। कभी आपने सोचा है कि अचानक आखिर नकारात्मक विचार क्यों जगह बना लेते हैं. कुछ सवाल ऐसे होते हैं जो सीधे तौर पर नकारात्मक विचार हमारे अंदर हावी करते हैं जैसे कोई असफलता या निराशा का डर खासतौर पर जब चीजें हमारे मन मुताबिक नहीं होतीं या हमें किसी आशा के विपरीत निराशा मिलती है. 

जीवन शार्ट नहीं लॉन्ग रेस है 

दूसरों से हमें अपनी तुलना की आदत भी काफी बुरा प्रभाव डालती है और हमें आज  के प्रतिस्पर्धा वाले दौर में हम किसी से मामूली रूप से भी पिछड़ना नहीं चाहते हैं. हम  ये भूल जाते हैं कि जीवन शार्ट रेस नहीं बल्कि लॉन्ग रेस है और मामूली बढ़त या पीछा होना कोई मतलब है है क्योंकि इसे स्ट्रेटेजी कहते हैं और अंतिम राउंड में जीत को  फाइनल कहा जाता है. 

उम्मीद की एक लौ को जलाना सीखें 

हर नकारात्मक विचार को चुनौती दें, क्योंकि वही आपके आत्मबल की परीक्षा है।”सकारात्मक सोच रखने वाले दोस्तों, परिवार या मार्गदर्शकों से जुड़े रहें। इसके साथ ही जब मन उदास हो, तब अपने भीतर झांकिए — वहां उम्मीद की एक लौ हमेशा जलती रहती हैऔर उस लौ को हमेशा जलाये रखिये. 

अतीत  की जाल से बाहर निकलें 

अक्सर हम अपने  अतीत या पुरानी गलतियों को बार-बार याद करके अपने वर्तमान को खराब करते हैं. यह तय है कि जो ख़तम हो चूका है या बीत गया है वह लौट  नहीं सकता और उससे सिर्फ सबक लेकर हमें आगे की कर देखना हीं हमारे भविष्य का निर्माण करेगा. इसके अतिरिक्त पुराने अतीत के बारे में लगातार सोचने से तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ता है जो न केवल हमारे वर्तमान बल्कि भविष्य को भी ख़राब करती है. 

 खुद को कम आंकने की गलती 

अक्सर हम खुद को काम आंकना  दूसरों से अपने  को कम आंकने की बीमारी पाल लेते हैं जिसमे हमें यह लगने लगता  है की समय हमारे साथ नहीं है या मुझमे वह योग्यता नहीं है जो किसी भी प्रकार से  योग्य है और यह हमारी सफलता में सबसे बड़ी बाधा है. इसके अतिरिक्त यह आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और यह दीर्घकालिक भी रह सकता है. 


नजरिया जीने का: नई शुरुआत की कोई उम्र नहीं होती - बस इरादा चाहिए


अक्सर आपने सुना होगा कि " मन के हारे हार है, मन के जीते जीत." बात बहुत पुरानी है लेकिन आप विश्वास कीजिए कि पहले की कही गई मुहावरों या आज पहले की अपेक्षा अधिक प्रासंगिक है. जी हाँ,  यह हमारा मन ही होता है जो हमारे विचारों को गाइड करता है. शरीर के अवस्था पर किसी का वश नहीं होता लेकिन अगर आपने अपने मन को यूथ और ऊर्जावान बनाना सीख लिया फिर संसार की कोई ताकत आपको परास्त नहीं कर सकती।

विख्यात अभिनेता देव आनंद जिन्हे बॉलीवुड में एवरग्रीन युथ के नाम से जाना जाता है, जब उनकी मौत हुए तो देश के में लीडिंग अंग्रेजी पेपर का हैडलाइन था-"Dev Anand: The Evergreen Youth Died At 91"

हम अपने ऊपर अपने उम्र को हावी कर  खुद को उम्र के वास्तविक पड़ाव का आभास कराकर खुद को बुजुर्ग या हारा हुआ मान लेते  हैं जबकि सच्चाई यह है कि अक्सर  ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत शुरुआत 50 या 60 की उम्र में होती है। 

आपको पता होनी चाहिए कि कर्नल सैंडर्स ने अपनी पहली KFC फ्रैंचाइज़ी 62 साल की उम्र में शुरू की थी  और आज KFC   दुनिया में किसीपरिचय की मोहताज नहीं है. 

गांधीजी ने 45 साल की उम्र के बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और अगर गांधीजी ने सोचा होता कि इस उम्र में कुछ हासिल नहीं  किया जा सकता तो, फिर कहानी कुछ और होती. 

अरुणा वासुदेवन आज जानी मानी यूटूबर हैं जिन्होंने 70 की उम्र में  कुकिंग चैनल शुरू किया — “Grandma’s Kitchen”का आरम्भ किया. 

सच्चाई यह है कि सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती, बस हिम्मत करनी होती है उन्हें सच करने की. 

कहने का मतलब यह है कि जीवन का हर दौर कुछ नया सिखाता है बस शर्त यह है कि और अगर हम सीखने और आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं. शारीरिक अवस्था पर हमारा कुछ अधिकार नहीं होता और यह जीवन का सच्चाई है, लेकिन  वास्तविकता यह है कि अगर हम सोच में युवा हैं तो फिर शारीरिक अवस्था कभी बाधा बन भी नहीं सकती है. 

विख्यात अभिनेता देव आनंद जिन्हे बॉलीवुड में एवरग्रीन युथ के नाम से जाना जाता है, आप सहज  हीं अंदाजा लगा सकते कि देव आनंद साहब की युथ सोच का  क्या असर था  उनके चाहने वालों पर. 

विश्वास कीजिये, जीवन में मिला हर नया दिन एक मौका है, कुछ नया करने का, चाहे उम्र कुछ भी हो बस शर्त  यह है कि हमें सोच  युवा होनी चाहिए. 


नजरिया जीने का: भगवान राम के जीवन से सीखें, जीवन की चुनौतियों का सामना करना

भगवान राम का जीवन एक आदर्श जीवन के रूप में माना जाता है, जहाँ उन्होंने जीवन की अनेक चुनौतियों का सामना धैर्य, साहस और समर्पण के साथ किया। उनके जीवन से कई महत्वपूर्ण सीखें ली जा सकती हैं जो हमें जीवन में सही दृष्टिकोण अपनाने में मदद करती हैं। भगवान राम के जीवन से सबसे बड़ी सीख यह मिलती है कि जब  जीवन कठिन हो, तब शिकायत के बजाय धैर्य और विश्वास बनाए रखें। अगर आप भगवन राम के जीवन पर गौर करेंगे तो पाएंगे की वनवास पर गए और इसके लिए उन्होंने राज्य, सुख-सुविधा और परिवार को त्याग दिया, उन्होंने कभी शिकायत नहीं की।  कहते हैं न की परिस्थितियों  देने  से अच्छा है कि या तो हम उन्हें बदलें या फिर उन्हें ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार कर लें।

  1. धैर्य और सहनशीलता: भगवान राम ने वनवास के दौरान और रावण के साथ युद्ध में अत्यधिक धैर्य और सहनशीलता का परिचय दिया। जीवन में जब कठिनाइयाँ आती हैं, तो धैर्य रखना और अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित रखना आवश्यक होता है।

  2. कर्तव्यपरायणता: भगवान राम ने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए राजसुख को त्याग कर वनवास स्वीकार किया। यह हमें सिखाता है कि जीवन में कर्तव्य का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

  1. सच्चाई और न्याय: राम ने हमेशा सत्य और न्याय का पालन किया, चाहे परिणाम कुछ भी हो। यह हमें सिखाता है कि सत्य के मार्ग पर चलने से हमें जीवन में अंततः सफलता और सम्मान मिलता है।भले ही हालात विपरीत हों, भगवान राम ने कभी धर्म का त्याग नहीं किया। रावण से युद्ध भी धर्म की रक्षा के लिए लड़ा गया था।

  2. संबंधों का सम्मानभगवान राम ने हमेशा इस वास्तविकता को साबित किया कि रिश्तों की नींव सम्मान, त्याग और सच्चाई पर टिकती है और उनके जीवन पर अगर  करें तो पाएंगे किभगवान् राम ने न केवल इंसानों के साथ बल्कि जटायु, हनुमान, सुग्रीव, जैसों के साथ भी रिश्तों की मर्यादा को निभाया। 

    राम ने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के साथ हीं भ्राता लक्ष्मण और भरत के प्रति कर्तव्य निभाया। उन्होंने हर रिश्ते की मर्यादा का आदर किया।

  3. विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक दृष्टिकोण: रावण के साथ युद्ध के समय भी, भगवान राम ने कभी नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाया। उन्होंने सदा सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ कठिनाइयों का सामना किया। जीवन में विपरीत परिस्थितियों का आना स्वाभाविक है और इससे कोई भी बच नहीं सकता. भगवान् राम का जीवन भी इसका अपवाद नहीं था. आप देखेंगे तो भगवान् राम ने भी अपने  जीवन में अनगिनत विपरीत परिस्थितियों का सामना किया खासतौर पर वनवास के समय. इस  दौरान भगवान राम ने हनुमान, सुग्रीव और विभीषण जैसे सच्चे मित्र बनाए और एक नई शक्ति का निर्माण किया।

    कहने का तात्पर्य यह है जीवन की मुश्किलें हमें नए अनुभव और नए साथी देती हैं लेकिन भगवन राम  के तरह उन्हें अवसर की तरह अपनाइए।

इन सबक से हमें यह समझ में आता है कि जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए। भगवान राम का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाता है कि कैसे हर परिस्थिति में सही नजरिया अपनाकर आगे बढ़ा जा सकता है।


रविवार, 9 नवंबर 2025

नजरिया जीने का: खुद के माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजने वाले को श्रवण कुमार पुत्र की उम्मीद है बेमानी


आज्ञाकारी पुत्र श्रवण कुमार और उनके माता-पिता के प्रति अथाह प्रेम की अमर कहानी भला किसने नहीं सुनी होगी. हाँ यह और बात है कि आज कल के युवा पीढ़ी और खासतौर पर बच्चों और किशोरों को श्रवण कुमार और उनकी अमर कहानी में शायद हीं दिलचस्पी हो?  

श्रवण कुमार-एक ऐसा नाम जो युगों-युगों तक यह बताता रहेगा कि निःस्वार्थ सेवा ही जीवन का सार है।

हालाँकि ऐसा नहीं है कि इसके लिए सिर्फ आज कल के नौनिहाल और बच्चों को हीं इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? आखिर आजकल की वह पीढ़ी जो अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेजकर खुद को शांति से जीने को गौरव समझती है,  तो फिर उनके बच्चे  अगर श्रवण कुमार को पहचानने से इंकार करे तो इसमें शायद कोई आश्चर्य भी नहीं होनी चाहिए?

 श्रवण कुमार अपने माता-पिता की बहुत सेवा करता था जो  कि अंधे थे और वे दोनों कुछ देख नहीं सकते थे. श्रवण कुमार काफी निर्धन थे और उन्हें अपने माता पिता  तीर्थ कराने के लिए पैसा भी नहीं थी. लेकिन श्रवण कुमार ने अपने  माता-पिता का तीर्थयात्रा पर ले जाने के लिए तराजू की तरह कांवर बनाया और एक तरफ अपने पिता को और दूसरी तरफ अपने माता को बैठकर तीर्थयात्रा पर निकल गए थे. 

श्रवण कुमार ने बताया कि उनका काँवर (बोहंगी) जिसमें अपने अंधे माता पिता को बैठकर तीर्थ के लिए चले थी, वह केवल एक भार नहीं था, बल्कि निःस्वार्थ प्रेम और अटूट समर्पण का प्रतीक था।

कल्पना हीं  की जा सकती है उस माता और पिता के ख़ुशी के ठिकाने का जो देख नहीं सकते थे  लेकिन उनका निर्धन पुत्र अपने कंधे पर कांवर पर तीर्थ यात्रा कराने के लिए घर से निकल गया.  

क्रूर काल चक्र श्रवण कुमार की मृत्यु

जैसा की कहानी हैं, एक दिन श्रवण कुमार सरयू नदी के किनारे अपने माता-पिता के लिए पानी भरने गए थे। राजा दशरथ शिकार पर निकले हुए थे और उन्होंने जल भरने की आवाज़ को हिरण समझकर तीर चला दिया।

तीर लगने से श्रवण कुमार घायल हो गए।अयोध्या के राजा दशरथ द्वारा वृद्ध माता पिता के लिए पानी लेने पहुंचे श्रवण कुमार को हिरन समझकर तीर लग जाती है और श्रवण कुमार वहीँ प्राण त्याग देते हैं. हाँ, श्रवण कुमार राजा दशरथ को एक पेड़ दिखाते हुए कहते हैं कि  आप कृपा कर मेरे वृद्ध माता पिता तक इस कमंडल के जल कको पहुंचा दें, क्योंकि अगर उन्हे अतिशीघ्र पानी नहीं पिलाया गया तो उनके प्राण निकल जायेगे।

हालाँकि कमंडल का जल लेकर राजा दशरथ श्रवण कुमार के माता-पिता जाते हैं लेकिन उनके माता पिता समझ जाते हैं कि पानी लाने वाला उनका पुत्र श्रवण नहीं है. 

राजा दशरथ कहानी सुनाकर और क्षमा मांगकर भी पानी पीने के लिए प्रार्थना करते हैं लेकिन  श्रवण के माता-पिता ने पानी पीने से माना कर दिया। 

राजा दशरथ को श्राप 

पुत्र वियोग में माता पिता व्यथित होकर दोनों राजा दशरथ को श्राप देते हुए कहते हैं कि जिस तरह हम दोनों अपने बेटे के वियोग में मर रहे हैं। एक दिन तुम भी अपने बेटे के वियोग में मरोगे। 

जैसा की कहा जाता  है, राजा दशरथ के बेटे प्रभु श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास हो गया और अपने बेटों के वियोग में राजा दशरथ तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए। 

आज हम अपने बूढ़े माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजते हैं, और एक श्रवण कुमार था, जिसने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपने कंधे पर दुनिया का सबसे अनमोल बोझ उठा लिया।

श्रवण कुमार पर प्रेरणादायक विचार

  • जिसने माता-पिता की सेवा की, उसने धरती पर भगवान को पा लिया।
  • श्रवण कुमार की तरह जो माता-पिता की आँख बनता है, वही सच्चा पुत्र कहलाता है।
  • माता-पिता का आशीर्वाद वह अमृत है, जो जीवन के हर संकट में रक्षा करता है।
  • माँ-बाप की सेवा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
  • श्रवण कुमार की कहानी सिर्फ कथा नहीं, हर बच्चे के लिए प्रेरणा है।


शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

नजरिया जीने का: हमेशा दिखावा से अधिक पास रखे, पर जानकारी से कम बोलें

 

नजरिया जीने का: William Shakespeare की एक बहुत ही महत्वपूर्ण उक्ति है "Have more than you show, Speak less than you know।" मतलब स्पष्ट है कि जानकारी से कम बोलें और दिखावा से ज्यादा रखें। शेक्सपियर की यह कथन का भावार्थ स्पष्ट सिखाती है कि हमें अपने ज्ञान और क्षमताओं को दिखाने के लिए बातचीत में ज्यादा हिस्सा नहीं लेना चाहिए। 

कम दिखाना कमजोरी नहीं, यह परिपक्वता की निशानी है और दुनिया में जितने बुद्धिमान व्यक्ति हुए हैं अगर आप उनके जीवन शैली का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने इसी मन्त्र को अपनाया है कि "अपनी ताकत को दिखाने की नहीं, उसे साबित करने की ज़रूरत है।"

“ज्ञान की गहराई शब्दों से नहीं, व्यवहार से झलकती है।”

आपकी गंभीरता आपकी व्यक्तित्व को और भी व्यापक बनाती है जो श्रोताओं में एक जिज्ञासा को बनाए रखती है। आपका ज्यादा और अनावश्यक बोलना न  केवल आपकी व्यक्तित्व बल्कि सुनने वालों में भी बोझलता का माहौल बनाएगा। इसके बजाय, हमें दूसरों को सुनना चाहिए और उनकी बातों को समझना चाहिए।

अगर आप इस कहावत की गंभीरता पर विचार करेंगे तो पाएंगे कि इसके कई फायदे हैं। सबसे पहले, यह हमें विनम्र और सम्मानजनक बनाता है। जब हम दूसरों को सुनते हैं, तो हम उनके विचारों और भावनाओं को महत्व देते हैं। यह हमें एक बेहतर संवादी बनाता है और दूसरों के साथ हमारे संबंधों को मजबूत करता है।

नजरिया जीने का: कठिन समय से कायर भागते हैं, सामना करने की कला सीखें 

याद रखें-"दिखावे से कुछ समय के लिए वाहवाही मिल सकती है, पर सम्मान केवल सच्चाई से मिलता है।"

“शोर मचाने वाले पेड़ नहीं, फल देने वाले पेड़ झुके रहते हैं।”

जानकारी से हमेशा काम बोलने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह आदत हमें दूसरों से सीखने में मदद करता है। जब हम दूसरों को सुनते हैं, तो हम नए विचारों और सूचनाओं से परिचित होते हैं। यह हमें अपने ज्ञान और समझ को बढ़ाने में मदद करता है। 

"दिखावा करना एक ऐसा भार है, जिसे उठाने में सुकून खो जाता है।"

कहते हैं नया कि जो आप हैं, वही बने रहें। दिखावा करना या झूठे आडंबर से खुद को बढ़ चढ़कर पेश करने भले आपको अस्थाई पहचान देगा, लेकिन सच्चाई स्थाई सम्मान।

इसके अतिरिक्त, यह हमें निर्णय लेने में मदद करता है। जब हम दूसरों से सुनते हैं, तो हम विभिन्न दृष्टिकोणों को देखते हैं। यह हमें अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद करता है।

"जो दिखावा करता है, वह अपनी पहचान खो देता है।"

गुरुवार, 6 नवंबर 2025

नजरिया जीने का: पिता का हत्यारा राजा उसके गोद में, हाथ में खंजर फिर भी बदला क्यों नहीं ले पाया सैनिक पुत्र


गौतम बुद्ध कहते हैं, खून के दाग या धब्बे को बदले की भावना से कभी मिटाई नहीं जा सकती साथ ही कभी भी  मन के अंदर के आक्रोश को आक्रोश से दूर नहीं किया जा सकता। बुद्ध का कहना है कि नाराजगी को भूलकर ही दूर किया जा सकता है और जीवन में आगे बढ़ने और शांति और सद्भाव के साथ रहने की लिए यही आवश्यक है।

एक बार कलामिति नाम का एक राजा था, जिसके देश पर पड़ोसी युद्धप्रिय राजा ब्रह्मदत्त ने विजय प्राप्त कर ली थी। राजा कलामिति अपनी पत्नी और पुत्र के साथ कुछ समय तक छिपे रहने के बाद, बंदी बना लिए गए, लेकिन सौभाग्य से उनका पुत्र, राजकुमार, बच निकलने में सफल रहा।

राजकुमार ने अपने पिता को बचाने का कोई रास्ता ढूँढ़ने की कोशिश की, लेकिन व्यर्थ। अपने पिता की फाँसी के दिन, राजकुमार भेष बदलकर फाँसी स्थल में पहुँच गया, जहाँ वह अपने दुर्भाग्यशाली पिता की मृत्यु को धिक्कार के साथ देखने के अलावा कुछ नहीं कर सका।

पिता ने भीड़ में अपने पुत्र को देखा और मानो खुद से बात कर रहे हों, बुदबुदाया, "ज़्यादा देर तक मत ढूँढ़ो; जल्दबाज़ी मत करो; आक्रोश को केवल भूलकर ही शांत किया जा सकता है।"

बाद में, राजकुमार ने लंबे समय तक बदला लेने का कोई रास्ता ढूँढ़ा। अंततः उसे ब्रह्मदत्त के महल में एक सेवक के रूप में नियुक्त किया गया और वह राजा का अनुग्रह प्राप्त कर लिया  ।

एक दिन जब राजा शिकार पर गया, राजकुमार नेबदला लेने का कोई अवसर ढूँढ़ा। राजकुमार अपने स्वामी को एकांत स्थान पर ले जाने में सफल रहा, और राजा, बहुत थका हुआ होने के कारण, राजकुमार की गोद में सिर रखकर सो गया, क्योंकि उसे राजकुमार पर पूरा भरोसा हो गया था।

राजकुमार ने अपना खंजर निकाला और उसे राजा के गले पर रख दिया, लेकिन फिर हिचकिचाया। उसके पिता द्वारा उसे फाँसी दिए जाने के समय कहे गए शब्द उसके मन में कौंध गए और फिर भी उसने कोशिश की, फिर भी वह राजा को नहीं मार सका।

अचानक राजा की नींद खुली और उसने राजकुमार को बताया कि उसने एक बुरा सपना देखा था जिसमें राजा का पुत्र उसे मारने की कोशिश कर रहा था।

राजकुमार ने हाथ में खंजर लहराते हुए, जल्दी से राजा को पकड़ लिया और खुद को राजा कलामिति का पुत्र बताते हुए घोषणा की कि आखिरकार अब समय आ गया है कि वह अपने पिता का बदला ले। फिर भी वह ऐसा नहीं कर सका, और अचानक उसने अपना खंजर नीचे रख दिया और राजा के सामने घुटनों के बल गिर पड़ा।

जब राजा ने राजकुमार की कहानी और अपने पिता के अंतिम शब्द सुने, तो वह बहुत प्रभावित हुआ और राजकुमार से क्षमा मांगी। बाद में, उसने राजकुमार को उसका पूर्व राज्य वापस कर दिया और उनके दोनों देश लंबे समय तक मित्रता में रहे।

राजा कलामिति के अंतिम शब्द, "लंबे समय तक खोज मत करो," का अर्थ है कि नाराजगी को लंबे समय तक नहीं रखना चाहिए, और "जल्दबाजी में काम मत करो" का अर्थ है कि दोस्ती को जल्दबाजी में नहीं तोड़ना चाहिए।

बुधवार, 5 नवंबर 2025

नजरिया जीने का: कठिन समय से विचलित होना कायरों का काम है-ऐसे करें सामना


जीवन कोई सरल यात्रा नहीं है और न हीं यह कोई फूलों का सेज है। जीवन में जीने के लिए हमें खूबसूरत वादियों के रास्ते से गुजरना होता है इसके साथ हीं इसमें कभी मुश्किलों के रेगिस्तान से भी दो चार होने पड़ते हैं। लेकिन फर्क सिर्फ इतना होता है कि कुछ लोग इन मुश्किलों में टूट जाते हैं, जबकि कुछ लोग इन्हीं हालातों से अपनी नई पहचान गढ़ते हैं। कहा भी गया है, जीवन में सिर्फ अपने लिए हीं नहीं सोचो क्योंकि आखिर यह संसार सिर्फ तुम्हारे लिए थोड़े हीं बना है। 

जीवन मे कठिन समय का आना और जाना लगा राहत है और आप उससे बच नहीं सकते। हाँ, आप अपने पाज़िटिव सोच और अपनी एट्टी ट्यूड से उससे निकाल सकते हैं। 

जब आप मुश्किल समय से गुज़र रहे हों, तो दोस्तों और परिवार के साथ जुड़ने से तनाव कम करने, अपने मूड को बेहतर बनाने और सभी बदलावों और व्यवधानों को समझने में मदद मिल सकती है।

हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे दौर आते हैं जब सबकुछ उलझा हुआ लगता है और वहां हमें धैर्य कि जारूरत होती है और यही समय असली ताकत का इम्तिहान होता है। जो व्यक्ति इस दौर में धैर्य रखता है, वही आगे चलकर दूसरों के लिए प्रेरणा बनता है।







याद रखें दोस्तों, सफलता तो हमें अपने प्रयासों के अंतिम दौर मे हीं  मिलती है, लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं कि हमारे पहले के प्रयास बेकार और निरर्थक थे। 
हथौड़े के अंतिम  वार से चट्टान चकनाचूर होता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हमारा पहला वार बेकार था।
सफलता निरंतर परिश्रम का फल होता है। 








मंगलवार, 4 नवंबर 2025

नजरिया जीने का: दूसरों के सोशल साइट स्टेटस देखकर अपने घर की सुख शांति नहीं खोएं


आज के डिजिटल युग में एक चलन सा बन गया है जहां हम अपने दैनिक गतिविधियों और सामाजिक व्यस्तताओं को सोशल सोशल साइट पर स्टेटस का अपडेट करना जीवन के एक फैशन बन चूका है. अगर सिर्फ अपडेट करना और अपने चाहने वालों को बताना हीं लक्ष्य होता तो यहाँ तक ठीक है, लेकिन विडम्बना यह है कि हम दूसरों के स्टेटस और उनके अपडेट देखकर अपनी घरों की सुख शांति को बर्बाद कर आग लगा रहे होते हैं. 

जाहिर है, आप खुद के घरों के शांति के लिए दूसरों के स्टेटस और अपडेट को जिम्मेदार नहीं बता सकते, लेकिन आप अपनी घरों की सुख और शांति के लिए कारण तो बन सकते हैं. दोस्तों  भले हीं आपको यह विषय निरर्थक और अप्रासंगिक लगे, लेकिन अगर आप विचार करेंगे तो पाएंगे की आज लोग खासतौर पर महिलायें इस गंभीर बीमारी से ग्रसित हो कर खुद अपनी और अपने घर की मानसिक  शांति को भंग कर रही है. 

कहने की जरुरत नहीं है कि आज व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल साइट्स पर अपने स्टेटस को डालना और दूसरों के अपडेट  को देखना हमारे रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुका है। निश्चित हीं इस प्रकार की स्टेटस और अपडेट डालना कोई गलत नहीं क्योंकि  आज के समय में आखिर  अपनी भावनाएं, विचार, खुशियाँ और कभी-कभी दुख भी स्टेटस के रूप में शेयर से हम अपनों के साथ जुड़े भी रहते हैं. लेकिन क्या बात सिर्फ इतनी सी सीधी और सहज है? 

दूसरों के स्टेटस से खुद को जोड़ना गलत

 आप चाहें तो खुद की मानसिक स्थिति या खास तौर पर महिलाओं के स्टेटस अपडेट पर प्रतिक्रिया को देखेंगे तो पाएंगे कि कई बार हम किसी का स्टेटस देखकर अनावश्यक रूप से परेशान या असुरक्षित महसूस करने लगते हैं, जो हमारी मानसिक शांति के लिए बेहद हानिकारक साबित होता है।ह म किसी के स्टेटस को देखकर सोच लेते हैं कि वह हमारे लिए ही कुछ कहना चाहता है जबकि कोई खास व्यक्ति अपने गतिविधियों या किसी आयोजन को लेकर सिर्फ अपडेट मात्र करता है लेकिन विडम्बना यह है कि हम ईर्ष्यालु पोस्ट समझकर खुद की मानसिक शांति को ख़राब करते हैं. जबकि असलियत में वह किसी और परिस्थिति या मूड के तहत लिखा गया हो सकता है। हर बात को अपने ऊपर लेना आत्म-पीड़ा का कारण बनता है।

मानसिक शांति दूसरे की स्टेटस से कहीं ज़्यादा कीमती 

अक्सर आप देखेंगे की जब कभी हम हम दूसरों के महंगे गिफ्ट, यात्रा या खुशियों से भरे स्टेटस देखते हैं, तो हम इस प्रकार से नहीं लेते जैसे की उसने सिर्फ हमें बताया है आया अपना सुख वाला मोमेंट शेयर किया है. हमारे मन में उसे अपडेट या स्टेटस के प्रति खुद के में तुलना

का भाव आने लगती है जो हमारे घर की सुख शांति और परिवार के अपने व्यक्तिगत सौहार्द को ख़राब करता है. तुलना हमेशा से गलत होता है और इसका असर हमेशा से ख़राब होता है अगर यह अपना नेचुरल भाव खो देता है. हम यह भूल जाते  हैं कि सोशल मीडिया सिर्फ दिखाने का मंच है, सच्चाई नहीं और यह सोच हमारे आत्मविश्वास और संतोष को कम करके अपने परिवार के अंदर की शांति को  ख़राब करती है. 

मानसिक अवसाद को बढ़ाती है 

कई बार किसी दूसरे के स्टेटस या  अपडेट हमें अनावश्यक रूप से गुस्सा, ईर्ष्या या दुख का भाव उत्पन्न करता है जो लगातार होने पर मानसिक रूप से अवसाद उत्पन्न करता है. लोग ऐसे स्थिति  खुद को असहाय समझने लगते  हैं और अपने ऊपर तरस खाना शुरू कर देते हैं. अक्सर ऐसे समय लोग खुद पर नियंत्रण खो देते हैं और बार-बार वह स्टेटस देखने लगते हैं। ऐसा करना अपने भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है क्योंकि  जितना ध्यान उस पर देंगे, उतनी बेचैनी बढ़ेगी  आपकी मानसिक अशांति को बढ़ाएंगी. 

अपनी ऊर्जा का सद्युपयोग करें, गंवाएं नहीं 

हम इस कदर खुद से कट चुके हैं कि दिन के आरम्भ में  हम पहले अपने बारे में और अपने जरुरी कार्यों के  बारे में  नहीं सोचते जिसे प्राथमिकता दी जानी चाहिए. लेकिन दूसरों के स्टेटस और अपडेट को देखना हमने ज्यादा जरुरी प्रतीत होता है.  हम अपनी प्राथमिकताओं की अनदेखी कर दूसरों के स्टेटस पर प्रतिक्रिया देने में समय गंवाते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि अगर हम वही ऊर्जा अगर हम सीखने, पढ़ने या खुद को सुधारने में लगाएँ, तो जीवन कहीं अधिक शांत और समृद्ध बन सकता है।


नजरिया जीने का:असीमित सोच और विचारों को किसी सीमा से नहीं बांधे, ऊँचा सोचें और बड़ा लक्ष्य हासिल करें

 


नजरिया जीने का: अगर आप असीमित शब्द के सार्थकता को समझेंगे तो पाएंगे कि यह शब्द बहुत ही उपयोगी है क्योंकि यह आपको  विश्वास दिलाता है कि आप वह सब कुछ कर सकता हूं जो आप चाहते हैं। सच तो यही है कि यह आपकी असीमित सोच है जो आपके अंदर के विचारों को जागृत करता है और  संभावनाओं की याद दिलाता है, तब भी जब सारी परिस्थितियाँ मेरे विरुद्ध हों। असीमित सोच और असीमित विचारों पर विश्वास करके, आप असीमित चीजें हासिल कर सकते हैं हाँ इसके लिए पहल आपको हीं करनी होगी। 



सोचने की कोई सीमा नहीं है, इसलिए बड़ा सोचें और अपने जीवन में बड़ा हासिल करें क्योंकि हर व्यक्ति के अंदर अपार शक्ति है और हमें बस उसे प्रज्वलित करना है। प्रकृति ने हमें अपने जीवन में चमत्कार करने की अपार शक्ति और क्षमता प्रदान की है, लेकिन त्रासदी यह है कि हम दर्शक दीर्घा के बीच में फिट होने का आनंद लेते हैं। 


विडम्बना यह हैं कि प्रकृति ने तो हमें कोई भेदभाव नहीं किया हमें शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करने में, लेकिन यह केवल हम ही हैं जो अपनी सोच को सीमा प्रदान करते हैं, इस तथ्य के बावजूद कि आपके पास इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त शक्ति और ऊर्जा है।

आपके आस-पास होने वाली हर घटना को कुछ न कुछ सीमा प्रदान की गई है। चाहे वह सड़क हो, क्रेडिट/डेबिट कार्ड हो, आपका शरीर हो, आपके शरीर के अंग हों और यहां तक कि सभी अत्यधिक परिष्कृत और नवीनतम उपकरण हों, उनके उपयुक्त और मानक प्रदर्शन की अपनी सीमाएं हैं। 

यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।

असीमित सोच:

हमारा दिमाग शारीरिक बाधाओं से बंधा नहीं है और हम चाहें तो हम वर्तमान और सीमाओं से परे कल्पना कर सकते हैं, अन्वेषण कर सकते हैं और सपने देख सकते हैं। यह केवल आपकी सोच है जिसकी कोई सीमा नहीं है और यह बहुत ऊपर तक जा सकती है क्योंकि आपके पास वास्तविक तर्क है और आपके संसाधन और दृष्टिकोण इसकी अनुमति देते हैं।

यह केवल हम ही हैं जो इस तथ्य के बावजूद कि आपके पास इसे हासिल करने के लिए पर्याप्त शक्ति और ऊर्जा है, अपनी सोच को सीमा प्रदान करते हैं। यह असीमित सोच हमें उन संभावनाओं पर विचार करने की अनुमति देती है जो पहली नज़र में संभव नहीं लगती हैं।


बड़ी सोच का महत्व:

प्रकृति ने हमें अपने जीवन में चमत्कार करने की अपार शक्ति और क्षमता प्रदान की है, लेकिन त्रासदी यह है कि हम दर्शक दीर्घा के बीच में फिट होने का आनंद लेते हैं। महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने से प्रेरणा मिलती है और हमें उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

बड़ी सोच चुनौतियों का सामना करने में नवीनता, रचनात्मकता और लचीलेपन को बढ़ावा देती है। हमें ऊंचा सोचना चाहिए और अपनी सोच को नई ऊंचाइयां प्रदान करनी चाहिए, आश्चर्यजनक रूप से हम अखबारों और टीवी समाचारों में ऐसे चमत्कार रचने वालों से गुजरते रहते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसे लोगों ने अपनी सोच को नई ऊंचाई प्रदान की है और अपने जीवन में बड़ा मुकाम हासिल किया है.


संतुलन महत्वपूर्ण है-

जबकि बड़ा सोचना महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ हीं सुनिश्चित करना भी जरुरी है कि आपके लक्ष्य भी यथार्थवादी हों और आपके मूल्यों और संसाधनों के अनुरूप हों। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है, सीखने, बढ़ने और उनके साथ तालमेल बिठाने की प्रक्रिया अत्यधिक मूल्यवान है। 

दुनिया में हर सफल शख्सियत ने तभी बड़ा हासिल किया है, जब उसने बड़ा सोचने का साहस किया। हमें एक मुर्ख और लापरवाह इंसान बनने की मानसिकता को बदलने के लिए तैयार रहना होगा न कि यह सोचना होगा कि प्रकृति ने हमें चमत्कार करने की सारी शक्ति और विचारों से सुसज्जित किया है।


नजरिया जीने का: खुद को कोसना छोड़े और जानें क्या होता हैं भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य


जीवन में परेशानियों का आना और जाना लगा रहता हैं क्योंकि अगर आपके जीवन में अगर कोई लक्ष्य है तो उसे पाने की कोशिश करने की जरूरत है। जाहिर है अगर कोशिश है तो रास्ते में बाधाएं  होंगी और उन्हें पार पाने की जद्दोजहद का नाम हीं तो संघर्ष है।  अब सवाल यह है कि क्या हमें इन परेशानियों और उनसे संघर्ष को अपनी नाकामी और बदकिस्मती मान लेनी चाहिए?

“किस्मत पर नहीं, कर्म पर भरोसा रखिए — वही भाग्य बनाता है।”

आप सबसे पहले समझे कि भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य होता क्या है और क्या आप वाकई में इतने खुश किस्मत वाले लोगों में शामिल नहीं हैं।

किसी ने क्या खूब कहा है कि-
"मन का शान्त रहना, भाग्य है
मन का वश में रहना, सौभाग्य है।
मन से किसी को याद करना, अहो भाग्य है।
मन से कोई आपको याद करे, परम सौभाग्य है।"

तो फिर आप यह क्यों नहीं सोचते कि एकमात्र चीज जो आपके भाग्य से सीधा संबंधित है वह है आपका मन और वही आपके भाग्य, सौभाग्य, अहो भाग्य और सौभाग्य का निर्धारक है।

“भाग्य नहीं, हमारा नजरिया तय करता है कि हम खुश हैं या नहीं।”

भाग्य एक व्यक्ति के जीवन में होने वाली घटनाओं का पाठ्यक्रम है, सौभाग्य अच्छा भाग्य है, दुर्भाग्य बुरा भाग्य है, और अहो भाग्य एक मजबूत भावना है कि कुछ बहुत अच्छा हुआ है।

"भाग्य" शब्द का अर्थ है वह जो पहले से लिखा हुआ है या निर्धारित है। ‘भाग्य’  का सामान्य अर्थ होता है वह जो  हमें कर्मों के आधार पर प्राप्त होता है। हमारा भाग्य कोई  कोई जादू नहीं, बल्कि हमारे प्रयासों और सोच का प्रतिबिंब है जिसे हम कहते हैं कि उसे यह भाग्य से प्राप्त हुआ है. 


वही "सौभाग्य" का शाब्दिक अर्थ होता है  अच्छा भाग्य या सौभाग्य। स्वाभाविक रूप से यह शब्द केवल किसी व्यक्ति के जीवन में अच्छी घटनाओं का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
‘सौभाग्य’ से हमारा तात्पर्य होता जब भाग्य के साथ सही सोच और सही अवसर जुड़ जाएं और हम किसी सफलता के परिणाम पर विचार करते हैं कि हमारे अनुकूल और अप्रत्याशित है. वास्तव में सौभाग्य  मेहनत + आस्था + सकारात्मक दृष्टिकोण का परिणाम होता है और इसके बार्रे में विद्वानों ने यह भी कहा है कि जो व्यक्ति दूसरों के लिए शुभ सोचता है, उसका सौभाग्य भी बढ़ता है।

“जो हर परिस्थिति में आभारी रहता है, वही सच्चा सौभाग्यशाली है।”

अगर जीवन के संघर्ष में भी आप वाकई में शांत है और अपने प्रयासों के प्रति ईमानदार हैं तो आप सबसे ज्यादा भाग्यशाली व्यक्ति हैं.

हालांकि "अहो भाग्य" एक अलग शब्द है जिसका मतलब "भाग्य", "सौभाग्य" और दुर्भाग्य से बिल्कुल अलग है। अहो भाग्य एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है "कितना महान भाग्य!" यह एक मजबूत भावना व्यक्त करता है कि कुछ बहुत अच्छा हुआ है। यह सौभाग्य से अधिक एक प्रशंसा और विस्मय का भाव है। यह किसी विशेष क्षण या घटना के प्रति गहरी कृतज्ञता को व्यक्त करता है। 
“अहो भाग्य वही है जब आत्मा को शांति मिले और मन को संतोष।”


      

नजरिया जीने का: कठिन समय में जो डटा रहता है, वही इतिहास बनाता है

 najariya jine ka Hard times in life how to face


नजरिया जीने का: कठिन समय जीवन का अभिन्न अंग है और यह जीवन के लिए धुप-छाव के खेल की तरह है. किसी विद्वान ने क्या खूब कहा है कि "परिस्थितियां हमेशा तुम्हारे अनुकूल रहे ऐसे आशा नहीं करों क्योंकि यह संसार सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं बनी है." हर व्यक्ति को अपने जीवन में कभी न कभी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है लेकिन यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण है कि कठिन समय हमेशा के लिए नहीं रहते हैं। धैर्य रखने से हमें मुश्किलों का सामना करने में मदद मिलती है।

जीवन में अगर आपके सामने कोई लक्ष्य है और कोई उद्देश्य है तो आपको उसे प्राप्त करने के लिए किसी न किसी कठिन दौर से गुजरना पड़ता है। आप भले हीं इस कठिन समय को नेगेटिव तौर पर लें, लेकिन सच्चाई यही है कि ये समय ही हमें हमारी असली क्षमता का एहसास कराते हैं।

जीवन में हार्ड टाइम या कठिन समय का आना जिंदगी का अभिन्न अंग है  और इससे घबराने के बजाये इसका सामना करें. हमारे जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है. जीवन के किसी खास फेज में आने वाले कठिन समय या हार्ड टीम और कुछ नहीं बल्कि परिस्थितियों का  संयोग ,मात्र होता है. निश्चित रूप से तथाकथित कठिन समय या हम कहें की विपरीत परिस्थितियां जीवन का एक खास समय होता जो हमारे सोच के अपेक्षित नहीं होती है और जो जल्द ही बीत जाते हैं।

अब यह निर्भर हम पर करता है कि इन कठिन समय का सामना करने को हैं तैयार  हैं या अपने पीठ दिखा कर भाग जाते हैं. लेकिन इतना तो तय है कि जो व्यक्ति कठिनाइयों से डरकर भाग जाता है, और समस्याओं से मुंह मोड़ लेता है, वही कायर कहलाता है और उसके लिए यह जीवन बोझ की तरह है क्योंकि जीवन एक रण क्षेत्र है वह एक हरा और कायर सैनिक बनकर जीने का रास्ता चुनता है. 

वहीं दूसरी और जो वीर होते हैं वे  कठिनाइयों को अवसर की तरह देखते हैं और  वे संघर्ष करके सफलता की राह तैयार करते हैं जिन्हे संसार एक सफल और योद्धा की तरह याद करता है. 

याद रखें, एक तीर को कमान से छोड़ने से पहले उसे पीछे की ओर खींचना जरुरी होता है, अतः हमारे जीवन का कठिन समय इस बात का संकेत है कि हमने एक कदम तो पीछे ले लिया है लेकिन इसका मतलब यह भी है कि हम  जीवन में एक लंबी छलांग लगाने के लिए तैयार हैं .

कठिन समय में विचलित होने के जगह हम इन टिप्स की मदद से खुद को मजबूत और सकारात्मक बनाये रख सकते हैं 

धैर्य रखें :

यह समझना महत्वपूर्ण है कि कठिन समय हमेशा के लिए नहीं रहते हैं। धैर्य रखने से हमें मुश्किलों का सामना करने में मदद मिलती है। जो कठिनाइयों से डरता है, वह न तो कभी जीवन की ऊँचाइयों को  छू सकता है और न हीं वह दुनिया के लिए कोई अनुकरणीय पदचिन्ह छोड़ पाता है. जीवन की सच्चाई भी यही है कि कठिन समय में जो डटा रहता है, वही इतिहास बनाता है।

तू छोड़ ये आंसू उठ हो खड़ा, 

मंजिल की ओर अब कदम बढ़ा,

हासिल कर इक मुकाम नया, 

पन्ना इतिहास में जोड़ दे,

घुट-घुट कर जीना छोड़ दे,

-नरेंद्र वर्मा

सकारात्मक रहें 

नकारात्मक विचारों में डूबने के बजाय, हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। हमें यह खुद को समझाना होगा कि जीवन में जिसे हम ख़राब समय या बुरा समय कहते हैं, वह हर संघर्ष हमें और मजबूत बनाने आया है, न कि हमें तोड़ने और हमारी मजबूत इरादे को डिगाने आया है. 

 कमजोरियों का सामना करें :

 कठिन समय हमें अपनी कमजोरियों का पता लगाने और उन्हें दूर करने का मौका देता है। कठिन समय हमें अपनी गलतियों से सीखने और भविष्य में उन्हें दोहराने से बचने का मौका देता है।

मदद लेने में नहीं हिचकें : 

कठिन समय में हमें दूसरों की मदद लेने में संकोच नहीं करना चाहिए। सकारात्मक और आशावादी रवैया अपनाकर, इन परिस्थितियों से बिना घबराए इनका सामना करने का साहस दिखाना ही बहादुरी है.ये कठिन समय आपके जीवन की दौड़ के रास्ते में कोई बाधा नहीं है... वास्तव में प्रकृति आपके धैर्य की परीक्षा लेने की प्रक्रिया में है जिसके परिणामस्वरूप आप मजबूत बनेंगे.


बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।

-अटल बिहारी वाजपेयी

आप इतिहास उठा कर देख लीजिये, यह कठिनाइयाँ हीं है जो हमारी धैर्य और परिश्रम को दुनिया को बताती है कि बिना संघर्ष के कोई भी व्यक्ति महान नहीं बन सकता साथ हीं यह हमारी  ताकत, धैर्य और आत्मविश्वास को उजागर करता है।