आज या कल, कभी भी समाज या परिवार में महिलाओं के योगदान के आगे पुरुषों के परिश्रम और हो, उनके योगदानों को उपेक्षा हीं किया जाता रहा है. निश्चित हीं परिवार में महिला चाहे वह मां के रूप में हों, पत्नी के रूप में हों, बहन के रूप में हो या बेटी के रूप हो, हमेशा से नारी शक्ति को सर्वोपरि माना गया है जिसमें किसी को संदेह होनी भी चाहिए. लेकिन क्या पुरुष का होना खासतौर पर परिवार के प्रति जिम्मेदारियों को निभाने में उसके योगदानों को उतना हीं सम्मान मिलती है, जितना का वह हक़दार होता है. एक बार देखिये एक पुरुष चाहे वह पिता हो, बेटा हो, भाई हो या पति हो, एक पुरुष होकर जीना क्या इतना आसान होता है.
आर्थिक ज़िम्मेदारी
परिवार के आर्थिक जरूरतों की जिम्मेदारी कोई मामूली कश्मकश नहीं होती है क्योंकि सुबह के सूर्योदय और सूर्यास्त को भूलना पड़ता है. पता भी नहीं चलता की कब सुबह हुई और कब शाम हुई क्योंकि अपने आर्थिक जिम्मेदारियों और पारिवारिक के प्रति अपनी कर्तव्यों को पहाड़ कुछ इस तरह मुँह बाए खड़ा होता है. इन जरूरतों को पूरा करने के चक्कर में खुद के वजूद को भूलना पड़ता है.
करियर और परिवार का संतुलन
आज के इस कठिन दौर में जहाँ नौकरी को बचाना भी जरुरी है, अपने लिए नया ठिकाना भी तलाशना पड़ता है क्योंकि परेशानियां हर जगह होती है नौकरी की चुनौतियों के बीच घर और परिवार के बीच सामंजस्य बैठना आज के दौर में आसान नहीं है.नौकरी की कश्मकश में और पारिवारिक की अपेक्षाओं के बीच बच्चों की होठों पर आये मुस्कराहट को बनाएं रखना भी जरुरी है क्योंकि आखिर जीवन का मतलब भी तो यही है.
सपनों की कुर्बानी
परिवार की खुशियों और ज़रूरतों की पहाड़ के आगे भला पुरुष या पिता को अपनी जरूरतें पूरा करने की तो बात छोड़िये, उनके बारे में सोचने की फुरसत भी शायद हीं मिलती होगी. जाहिर है कि परिवार की खुशियों को पूरा करने और की बोझ तले अपने व्यक्तिगत सपनों और इच्छाओं का त्याग करना एक मज़बूरी है जिसे हर हाल में पूरा किया जाना चाहिए.
भावनाओं को दबाना
आपकी जरा सी चेहरे पर शिकन आपके परिवार और खास तौर पर आपके बच्चो के चेहरे की हंसीं छीन सकती है. आप किसी भी दुख या परेशानी में भी हों, आपको मज़बूत बने रहना जरुरी हैं क्योंकि आपकी थोड़ी से कमजोरी परिवार के खुशियों को कम सकती है.
स्वास्थ्य की अनदेखी
काम और जिम्मेदारियों में व्यस्त होकर और आप अपनी सेहत के प्रति लापहवाह होना हमेशा से मज़बूरी रही है. पिता जहाँ तक हो सके अपनी स्वस्थ्य सम्बन्धी परेशानियों को पहले भुल जाना बेहतर समझता है ऐसा नहीं है की घर से निकलने के बाद उसे बाहर सबकुछ उसके अनुकूल हीं मिलती है या सरदर्द या फिजिकल परेशानी नहीं होती लेकिन उसे शेयर करने का समय भी नहीं होता और दूसरी बात यह है कि क्योंकि उसे उसकी थोड़ी से परेशानी पुरे परिवार को अस्वस्थ कर सकती है जो खुद के सेहत के दर्द से ज्यादा दर्द देगा इसके लिए
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