प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अक्टूबर 2025 को प्रसारित मन की बात के 127 वें संस्करण में महान विभूति कोमरम भीम का चर्चा किया। असम के रहने वाले महान विभूति कोमरम भीम की जयंती अभी 22 अक्टूबर को मनाई गई है।
कोमरम भीम की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बताया की किस प्रकार से ऐसे कठिन समय में करीब बीस साल का एक नौजवान अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ था। उस दौर में जब निज़ाम के खिलाफ एक शब्द बोलना भी गुनाह था।
कोमाराम भीम भारत के एक गोंड जनजातीय नेता थे जिन्होने हैदराबाद की मुक्ति के लिये वहां के निजाम के साथ संघर्ष किया था. मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चर्चा करना अपनेआप में इस बात का सुबूत है कि उनका जीवन मोटिवेशनल रहा होगा.
उस नौजवान ने सिद्दीकी नाम के निज़ाम के एक अधिकारी को खुली चुनौती दे दी थी। कोमाराम भीम ने निजाम के आसफ़ जाही राजवंश के विरुद्ध संघर्ष किया और निजाम के न्यायालयी आदेशों, कानूनों और उसकी प्रभुसत्ता को सीधे चुनौती दी.
कहा जाता है कि निज़ाम ने सिद्दीकी को किसानों की फसलें जब्त करने के लिए भेजा था। लेकिन अत्याचार के खिलाफ इस संघर्ष में उस नौजवान ने सिद्दीकी को मौत के घाट उतार दिया। वो गिरफ़्तारी से बच निकलने में भी कामयाब रहा। निज़ाम की अत्याचारी पुलिस से बचते हुए वो नौजवान वहाँ से सैकड़ों किलोमीटर दूर असम जा पहुंचा।
प्रधान मंत्री मोदी ने चर्चा करते हुए कहा कि उस महान विभूति कोमरम भीम की आयु बहुत लंबी नहीं रही, वो महज 40 वर्ष ही जीवित रहे लेकिन अपने जीवन-काल में उन्होंने अनगिनत लोगों, विशेषकर आदिवासी समाज के हृदय में अमिट छाप छोड़ी।
ऐसा कहा जाता है कि कोमरम भीम अल्लूरी सीतारामाराजू से प्रेरित थे और उन्होंने निज़ाम सरकार के जंगली आधिकारिक अन्याय के खिलाफ विद्रोह में महत्पूर्ण भूमिका निभाई. अपने आंदोलन और लोगों के प्रति उनके भरोसे ने कोमाराम भीम को विद्रोह की आग से भड़कते हुए लोगों के बिच एक वास्तविक देवता बन गए।
उन्होंने निज़ाम के खिलाफ संघर्ष कर रहे लोगों में नई ताकत भरी। वे अपने रणनीतिक कौशल के लिए भी जाने जाते थे। निज़ाम की सत्ता के लिए वे बहुत बड़ी चुनौती बन गए थे। 1940 में निज़ाम के लोगों ने उनकी हत्या कर दी थी। प्रधान मंत्री ने युवाओं से आग्रह किया कि वे उनके बारे में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करें उनके जीवन से प्रेरणा लें.

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