महान दार्शनिक, विद्वान और कूटनीति के जनक चाणक्य का मूल्यांकन आज तक कर पाना संभव नहीं हुआ है क्योंकि उनके द्वारा दिए गए सूक्तियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और लोग उनके पाठ कर उनसे लाभ उठा रहे हैं।
"उद्योगे नास्ति दारिद्रयं जपतो नास्ति पातकम्।
मौनेन कलहो नास्ति जागृतस्य च न भयम्॥"
विख्यात विद्वान चाणक्य का यह श्लोक इंसानों के विविध चारित्रिक विशेषताओं और प्रति दिन के व्यवहार मे लाए जाने वाले विचार का प्रतिनिधित्व करता है। चाणक्य का साफ कहना है कि परिश्रम करने वाले व्यक्ति को कभी दरिद्रता (गरीबी) का सामना नहीं करना पड़ता। अर्थात व्यक्ति को अगर दरिद्रता और गरीबी से मुक्ति पाना है तो उसे उद्योग करने के अलावा और कोई उपाय नहीं है क्योंकि उद्यम से हीं दरिद्रता हो सकती है।
साथ ही चाणक्य का कहना है कि ईश्वर के नाम का जप करने वाले को पाप नहीं लगता। अर्थात पाप से मुक्ति के लिए इंसान को जप अर्थात ईश्वरण कि शरण मे जाना चाहिए।
कलह के संबंध मे चाणक्य का कहना है कि कलह को अगर शांत करना चाहते हैं तो मौन रहना हीं एकमात्र उपाय है क्योंकि कलह या झगड़ा कि स्थिति मे बोलते रहने से बात बिगड़ेगी हीं। वहीं चाणक्य का कहना है कि जागते रहने से कभी भी भय नहीं होता है।
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